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गुरुवार, 13 नवंबर 2014

मौसम - ए - इश्क



सर्द रातो सी होती है मोहब्बत
रिश्तो में गरमाहट दे जाती है
गर्म हवाओ सी नोक झोंक से
पारा प्रेम का बढ़ता जाता है
धुंध सी अविश्वास की परते
गहरे विश्वास को ढक देती है
सावन और भादो के प्रेम झूले में
ज़ज्बात आसमान छूने लगते है
बरसात में भीगते और संवरते रिश्ते
कभी अहसास पतझड़ से बिखर जाते है
धरती हर मौसम को सहती है 'प्रतिबिंब'
लेकिन इंसान मौसम सा बदलता जाता है

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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