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शनिवार, 7 मार्च 2015

उस रंग से इस रंग तक .....



तुम्हारे चेहरे पर  
न जाने कितने रंग अब तक
परते बिछाए चिपके थे
न जाने कब
किस किस ने रंग दिया
न जाने कब
किस रंग ने आकर्षित किया

रंगों का काम ही है
आँखों को सुकून देना और
अपने प्रति आकर्षण पैदा करना
कभी ये रंग कभी वो रंग
इन्द्रधनुष से बनकर
आँखों को गुमराह करते है  

हो गई होली
खेल ली रंगों से होली
आखिर ये रंग उतरने ही है
आज नही तो कल  
रंगों का खेल हो चुका अब
असली चेहरा दिखने लगा होगा
देख लीजिए खुलकर ‘प्रतिबिम्ब’ अपना
प्यार का रंग केवल यहीं नज़र आएगा
हाँ ये रंग बिलकुल पक्का है
मन से पूछना बिलकुल सच्चा है
सोच कर देखना
तन मन खुद ही गुलाबी हो जाएगा
शरमा मत जाना

अहसासों के मिलन तक छिपाए रखना   

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