पूछ रहे कुछ बिखरे ज़ज्बात
बिगड़ गई है अपनी बात
क्यों ?
धड़कन थी हमारी जो कभी,
अब वो धड़कन बढाती है
क्यों ?
प्रेम अपना सावन था जहाँ
अब पतझड़ नज़र आता है क्यों
?
कभी एहसास उमड़ते थे जहाँ
अब उस पल को हम तरसते है
क्यों ?
शब्द, भाव, गीत-संगीत
गूंजता था दरमियाँ
अब ये नज़र कहीं और आता है
क्यों ?
साथ लिख जाते, बिन कहे
समझ जाते थे
आज कोई और पढता लिखता
समझाता है क्यों ?
उत्तर थे हम तुम्हारे हर
सवाल के
आज हम पर ही प्रश्न खड़े
है क्यों ?
देर सबेर ही सही वक्त
अपना होता था
आज दूरी का जिम्मेदार
वक्त बना क्यों ?
हर पल दीदार की थी जहाँ ख्वाइश
आज केवल कर सकते हम फरमाइश
क्यों ?
हम पहले होते थे जिस कतार
में
अब आखिर में खड़े उसी कतार
में क्यों ?
जानता हूँ हर सवाल का
उत्तर तुम्हारे पास है
आखिर इन प्रश्नों को कोरा
छोड़ा है क्यों ?
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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