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बुधवार, 22 जुलाई 2015

अब विराम चाहता हूँ .....




लिखता ही जा रहा था,  रुकना चाह कर भी मैं रुक न पाया
जो देखा, जो समझा, जो सोचा, शब्दों में जोड़ता चला गया

कभी सच अपना, कभी दूसरो का, शब्दो में ढालता चला गया
कभी कड़वा, कभी मीठा, यहाँ अक्सर मैं परोसता चला गया

प्रेम जताया, प्रेम समझाया, कभी प्रेम को गुनाहगार भी बताया
दुश्मनी देखी और निभाई, कभी दुश्मनों को आइना भी दिखाया

किसी को शब्दों से, किसी को भावो से, मैं अपना बना पाया
कोई  शब्दों को मेरे दिल से लगा बैठा और  किनारा कर गया

शब्दों को किसी ने अपना समझा, कोई असहमत नज़र आया
किसीने  साँझा कर साहस किया, कोई चुपचाप  निकल गया

सीखने - सिखाने का प्रयास भी सफल - असफल यात्रा सी रही  
कई साथ हुए, कुछ ने छोड़ा साथ, जिंदगी फिर भी चलती रही

किसी ने गुरु, किसी ने सर कहा,  कोई वाह वाह भी करता रहा
शुक्रिया, आभार, धन्यवाद कह कर मैं भी मित्र धर्म निभाता रहा

इस दुनियां में यूं शब्दों को हथियार बना, भावो से मैं खेलता गया
अब विराम लेता हूँ, क्षमा करना मित्रो गर कहीं गलत कुछ कह गया


- प्रतिबिम्ब  बड़थ्वाल 


सोमवार, 20 जुलाई 2015

यादो का कोना



रिवायत बदली है
अब नजरिया बदल गया है  
जिन्दगी का मकसद
अब  बदल लिया है
तुम्हारे मन की बात
कोई और लिखने लगा है 
मुझसे ज्यादा तुम्हे
कोई और पहचानने लगा है


तुम्हारी खुशबू का एहसास लिए
समेट रहा हूँ तमाम  यादें
आवाज़ दे रहा हूँ खाली घर में 
पलट कर कोई बोलता नही
अपनी ही आवाज के शोर में
अब दम सा घुटने सा लगा है
गूँज रहे है कहकहे कहीं दूर
उठ रही टीस उस हर हंसी पर

बदल रहा हूँ
तुमसे जुडी आदते कुछ ख़ास
ढूंढ रहा हूँ
खोया हुआ हर छोटा अहसास
वो चाह, वो बैचनी
अब कही ओझल हो चुकी है
या फिर शायद
किसी कोने में दम तोड़ती मिले
हाँ यादो का हर कोना
मेरे बहुत करीब आ रहा है
शायद आखिरी बार

मिलन की चाह लिए ....... 

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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