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शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

कोरा ख़त






पल पल का साथ समझ बैठा था जिसे
उसने इंतजार का चौकीदार बना दिया हमें

बिन मिले हमसे, चैन न आता था जिसे
आज वो चैन से रहते है बिना मिले हुए हमें

तस्व्वुर में बना रहता है आना जाना उनका
दिल की बात कहे हुए अब जमाना हुआ हमें

उस नदिया की लहर बनने ख़्वाब था मन में
छोड़ पीछे उसने आज किनारा बना दिया हमें

एहसास दिल के लिख भेजा था ख़त उन्हें
उनकी दरियादिली देखो ख़त कोरा भेज दिया हमें

चाँद तारों में देखकर बात करता था जिससे
आज 'प्रतिबिम्ब' उसने ही खामोश कर दिया हमें 

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

तेरा मिलना





एक भीड़
बिखरी सी आस पास
तेरा  मिलना
बना गया लम्हें खास

वक्त चला
तेरा साथ मिलता गया
इश्क का
हर लम्हा जीता गया

मेरी मोहब्बत
वक्त का सवाल था
तेरी मोहब्बत
वक्त का जबाब था

कुछ पल
हमें बैचेन करने लगे
कुछ एहसास
तन मन बसने लगे

नया दौर
अपना सपना टूटने लगा  
हर पल
इंतजार में गुजरने लगा  

वक्त बदला
साथ फिर छूटने लगा
आज फिर
भीड़ में खो गया 

..... सकता हूँ मैं



देख उदास तुम्हे
भला कैसे मुस्करा सकता हूँ मैं
हाँ रहो खुश तुम
वो प्यार देने की कोशिश कर सकता हूँ मैं

अमानत हो तुम
तुमसे कैसे खुद से दूर कर सकता हूँ
खुशी हो मेरी तुम
हर गम तुम्हारे ले सकता हूँ मैं

चाहता हूँ तुम्हे
चाहत से कैसे मुह मोड़ सकता हूँ
मोहब्बत हो मेरी तुम
तुम्हारे बिन कैसे रह सकता हूँ मैं

अपनाकर मुझे तुमने 
मेरे एहसास को तुमने जगह दी है
अहसान है तुम्हारा प्रिये
हकीकत को कैसे झुठला सकता हूँ मैं

जरुरत न हो जब मेरी
तब उपेक्षा बेहिचक कर सकती हो
प्यार में न सही प्रिये
मुसीबत में काम आ सकता हूँ मैं

शुक्रिया कहना चाहता हूँ
हक़दार नही जिसका मिला वो मुझे
जब लगे लायक नही
कह देना मुझे, दूर जा सकता हूँ मैं


-         प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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