पुराणों के अनुसार शंख हमारी संस्कृति
में चंद्रमा सूर्य समान देवस्वरूप है
जिसके अग्र भाग में गंगा सरस्वती,
मध्य में वरुण और अग्र में ब्रह्मा वास
है
आत्मा, प्रकाश, आकाश, वायु, अग्नि, जल. पृथ्वी तत्वों से शंख निर्मित है
शंख सागर के गर्भ से हुआ उत्पित,
विष्णु - लक्ष्मी के हाथो में सुशोभित है
इस धरोहर की उत्पति अधिक होने से
जगन्नाथपुरी शंख क्षेत्र कहलाता है
शंख द्वारा जल अभिषेक देवताओ को करता
प्रसन्न, कल्याणकारी होता है
शंख प्रतीक निधि और सनातन धर्मं का,
देव अर्चना हेतू ये प्रेरित करता है
पाता है जब स्पर्श शंख का,
जल भी गंगाजल के सदृश पवित्र हो जाता है
शंख के बहुत से होते आकार,
विशेषताओ के कारण भिन्न है इसके प्रकार
धार्मिक कृत्यों में उपयोग, पूजा स्थल में रख मनोकामनायें होती साकार
पांचजन्य शंख से कृष्ण का नाता,
युद्ध में अर्जुन ने देवदत शंख बजाया था
अनंत विजय शंख था युद्धिष्ठर का,
भीष्म ने भी पोडरिक शंख बजाया था
वामावर्ती शंख है विष्णु स्वरूप,
लक्ष्मी का स्वरूप दक्षिणावर्ती शंख
होता है
वैज्ञानिक व् आयुर्वेद का महत्व लिए,
शंख हर जीवन को प्रभावित करता है
सनातन धर्म का ये है प्रतीक,
ध्वनी से कहीं आस्था तो कहीं बढ़ता जोश
सकारत्मक उर्जा के लिए होता शंख प्रयोग,
नकारत्मक उर्जा का होता नाश
प्रतीक है शंख नाद का,
ॐ का, जीवन का, आगाज़ का व् विजय घोष का
आओ करे ‘प्रतिबिंब’ शंखनाद, आध्य्तम, नैतिकता और धार्मिक चेतना का