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गुरुवार, 24 मार्च 2016

स्मृति का दिया ...





मेरी स्मृति का एक जला कर दिया
जलती लौ से रोशन खुद को तुम कर लेना
हो पीड़ा मन के किसी कोने पर अगर
चंद पुष्प भावो के महफ़िल में अर्पण कर देना

रंग चटक जीवन के तुम अपनाकर
यादो से मेरी दूरी बना, आज में पनाह ले लेना
चेहरे की नफरत को शृंगार से छिपाकर
दुनियां के लिए तस्वीर मेरी दीवार पर सजा देना

यूं तो यादे किसी मेहमान सी आयेंगी
पहचानती नही हो कहकर तुम उनसे विदा ले लेना
नया वक्त यूं तो फुरसत मिलने की न देगा
साजिश अगर हो भी गई तो आंसू दो चार बहा देना

उम्मीदों का कारवां अंत तक चलता रहा
किसी मोड़ पर नज़र आये तो राह अपनी बदल लेना
गुम एहसास और शिकायत हम सफर थे
आये कोई खबर उनकी तो पता अपना तुम बदल लेना

सुनो प्यार को अब कसमो वादों में न ढूंढना
हिम्मत कर उसे तुम जीने का सलीका बना लेना
साथ 'प्रतिबिंब' तुम्हारा हर ठोकर से बचा लेगा
साथ न भी सही मगर आंसू गम के तेरे चुरा लेगा 


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल  २४/३/२०१६ 

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