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रविवार, 1 नवंबर 2009

स्वयं का पहला कदम


आज की बात...

कुछ सोच रहा था तो और उलट पलट कर स्थितियो और परिस्थितियो को देखने लगा. यूएई में २३ सालो से रह रहा हूं, फ़िर सोच क्या खोया क्या पाया के खाते दिमाग पर तांडव करने लगे. ज्यादा इस पर ना सोचू इसलिये आने वाले समय की ओर सोच को मोडा और पाया कि नये साल(दुनियाभर के लोग इसे मानते है) मे कुछ दिन शेष है. फ़िर येसे ही कुछ बाते मन मे उभरने लगी.

नये साल कि सुगबुगाहट के शुरु होते ही वातावरण इसके इर्द-गिर्द घूमने लगता है। चाहे इलेक्ट्रानिक मीडिया हो या प्रिन्ट मीडिया हो सब मिल जुट कर इसको प्रोत्साहित करते है। हम सब लोग इससे अछूते नही है। शुरु हो जाती है बधाई संदेशों की भरमार अपने ही अंदाज़ में। हिन्दुस्तानी कहीं भी हो भारत में या भारत से बहार, शायद अपने नववर्ष को इतनी अहमियत नही देते है या इस रुप में नही मनाते है। लेकिन पश्चिम की इस रीत को आसानी से अपने जीवन धारा में ढ़ाल चुके हैं। पाश्चात्य संस्कति कई तरह व बातो मे हम अपनाने लगे है और कोई उस पर कटा़क्ष करे तो उसे हम केवल धर्म का नाम देकर चुप करा देते है. लेकिन ये भी कडवा सच है कि वे लोग किस कारण से विमुख है और क्या कारण है कि अपने लोगो को वो नही दे पा रहे है जो दुसरे देश या फ़िर दुसरे देशो की संसकति जिसमे खासकर युवा. कुछ कल की बात करते है और कुछ आने वाले कल की बाते। कुछ लोगो को नसीहत देते हुए कुछ खुद को सुधारने की कसमें खाते हुये। कुछ समाज की बात करते हुये नही थकते तो कुछ समाज की ख़ामियाँ गिनाते हुये देखे जा सकते है।खैर इस बात को एक नये शीर्षक के साथ शुरु किया जा सकता है। अभी तो केवल आज की बात के साथ ही रहना चाहते है।

सोचने लगा कि अतीत की बातें हमेशा ही कचोटती है जिनसे स्वयं को,मित्रो को,परिवार को या संबधियो को, समाज को या राष्ट्र को हानि पहुँची हो। शायद यही वक्त होता है विचार मंथन का, फिर इससे सबक लेने का या इनसे उबरने का या फिर इसमें संशोधन करने का। सामने होता है लेखा जोखा जिसमे बस रहता है क्या खोया क्या पाया। वक्त के थपेड़े भी आने वाले कल की बुनियाद लिख जाते है, और आईना बन जाते है हमारे भविष्य का।

फ़िर अपने देश और समाज का रुप फ़िर आंखो में मंडराने लगा. कौन गलत कौन सही,राजनीति,खेल,शिक्षा या अन्य क्षेत्र्, संस्कति और साहित्य जैसे शब्द कभी विकराल रुप या कभी सहज़ता से मेरे मन मस्तिष्क पर दौड भाग करने लगे. विचार मंथन भी हुआ तो कुछ निश्कर्ष इस कदर सामने आया इसमे मै और आप दोनो शामिल है.

क्यों ना आज एक ही वादा करें अपने आप से की स्वयं को पहचाने। अपनी संस्कृति, इतिहास, विज्ञान, साहित्य, शिक्षा और त्यौहारो की ओर सच्चे मन से झुके और जानने की कोशिश करे इसकी शुरुआत और आज हम इसे कंहा देख रहे है. हम खुद ही जान जायेगे कि हम हिन्दुस्तानी कितने धनी है हर क्षेत्र में. बस कमी है तो एक कदम की जो प़क्षपात से दूर हो और "मै" के प्रभाव से कोसो दूर. हम अपने आप को निष्ठापूर्वक अपनी ही नज़रो में सभ्य, सशक्त, और श्रेष्ठ बनाये। आप योग्य तो परिवार समर्थ , परिवार समर्थ तो समाज प्रबल, अगर समाज प्रबल तो राष्ट्र महान। शायद यही देश के प्रति सच्ची भक्ति हो - एक सुनहरे भविष्य की और स्वयं का पहला कदम।

जय हिन्द्!!!!

प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल
अबु धबी. यूएई.

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