हर तरफ शोर था
जिसे ना सुना किसी ने
वो अल्फ़ाज़ मेरे थे
भीड चारो और थी
जिस् चेहरे पर नज़र ना पड़ी
वो चेहरा मेरा था
समुन्द्र में तूफान उठा
जिसको साहिल ना मिला
वो कश्ती मेरी थी
किस्मत ढूढती रही दर
जिसका दर ना मिला
वो घर मेरा था
प्यार फ़िजा में बिखरता रहा
जिसे प्यार न मिला
वो दिल मेरा था
ख्वाईश मुंह फैलाती रही
जिसकी इच्छा पूरी न हुई
वो तम्न्ना मेरी थी
सबकी बातो को माना उसने
जिसे नही माना
वो बात मेरी थी
हसरत ए मंजिल बुलंद थी
जिसे मंजिल ना मिली
वो मुकद्दर मेरा था
महफिल सजाई थी उन्होने
जिसे निमत्रण ना था
वो शख्स मै था
सबके लिये इस्तकबाल है
जिसे इज़ाजत ना मिली
वो सलाम मेरा था
कुछ पन्ने किताब बन गये
जिसे कोरा कागज़ ना मिला
वो कलम मेरी थी
रिश्तो का हुजूम सामने था
जिसे जोडा न गया
वो नाम मेरा था
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, अबु धाबी