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रविवार, 24 अक्तूबर 2010

वो मैं था




हर तरफ शोर था
जिसे ना सुना किसी ने
वो अल्फ़ाज़ मेरे थे
भीड चारो और थी
जिस् चेहरे पर नज़र ना पड़ी
वो चेहरा मेरा था
समुन्द्र में तूफान उठा
जिसको साहिल ना मिला
वो कश्ती मेरी थी
किस्मत ढूढती रही दर
जिसका दर ना मिला
वो घर मेरा था
प्यार फ़िजा में बिखरता रहा
जिसे प्यार मिला
वो दिल मेरा था
ख्वाईश मुंह फैलाती रही
जिसकी इच्छा पूरी हुई
वो तम्न्ना मेरी थी
सबकी बातो को माना उसने
जिसे नही माना
वो बात मेरी थी
हसरत मंजिल बुलंद थी
जिसे मंजिल ना मिली
वो मुकद्दर मेरा था
महफिल सजाई थी उन्होने
जिसे निमत्रण ना था
वो शख्स मै था
सबके लिये इस्तकबाल है
जिसे इज़ाजत ना मिली
वो सलाम मेरा था
कुछ पन्ने किताब बन गये
जिसे कोरा कागज़ ना मिला
वो कलम मेरी थी
        रिश्तो का हुजूम सामने था
जिसे जोडा न गया
वो नाम मेरा था 
 - प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, अबु धाबी

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

।।ऊँ जय ब्लागर मंडली।।



ब्लागर व्यथा ( एक व्यंग्य)

लिखना पढना सीखा, लिखने तब  मन को  समझाया
लिखने की जब सूझी, तब ब्लाग अपना मैने बनाया
ऊँ जय ब्लागर मंडली

दे नाम ब्लाग को फिर, उसे कुछ  चित्रो से सज़ाया
ढूढे कुछ विजेट नेट पर, फिर ब्लाग मे उन्हे लगाया
ऊँ जय ब्लागर मंडली

जा दूसरो के ब्लाग पर, देखा क्या मन को भाये
किल्क किया उन पर, फिर अपने ब्लाग पर लाया
ऊँ जय ब्लागर मंडली

ब्लागर देखे मैने बहुतेरे, कुछ अच्छे कुछ थे वंहा बुरे
अच्छा बुरा ना देखे कोई, बस नाम पर टिप्पणी करते सारे
ऊँ जय ब्लागर मंडली

नाम ना हो दोस्त ना हो तो, पोस्ट पर ना आये कोई
कुछ ब्लागर लिखते कुछ भी, फिर भी टिप्पणी देता हर कोई
ऊँ जय ब्लागर मंडली

हर तरफ 'गैंग' जैसा है जाल, चलते है जंहा सब अपनी चाल
महिला ब्लागर लिख दे कुछ भी, सब उसको कहते बस कमाल
ऊँ जय ब्लागर मंडली

अच्छे लेखो कविताओ पर, आये ब्लागर बस दो - चार
राजनीति या व्यंग्य जैसो पर, बस करते बात या प्रहार
ऊँ जय ब्लागर मंडली

लिखता रहता मै फिर भी, ना करता किसी की परवाह
मन के भावो को समेट कर, करता मै अपनी पूरी चाह
ऊँ जय ब्लागर मंडली

कुछ मित्रो से मिल जाता स्नेह, नाम की नही मुझको दरकरार
कभी समय मिले आप को भी, आये और नमन करे स्वीकार
ऊँ जय ब्लागर मंडली

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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