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बुधवार, 18 जुलाई 2012

मैं सीता मैं द्रौपदी ...... जरा सुन लों





क्यों आज तुम हमे इतना याद करते हो
जो हुआ भी नही वो भी तुम सोच लेते हो
तुम को सिखलाने हमने कितने रूप धारे थे
सीखे तो कुछ नही पर हमे बदनाम करते हो

हमने तब भी नारी शक्ति का परिचय दिया था
सिखलाने तुमको हाँ हमने कुछ अपमान सहा था
क्यों, कैसे ये हुआ इसका कारण भी बतलाया था
सीख न सके न सही, गलतियो का न दुष्प्रचार करो

त्याग, ममता, स्नेह और आदर का ताना - बाना था
सत्य - असत्य का भेद तुम्हें हमने तब समझाया था
कभी सीता कभी द्रौपदी बन स्त्री का हर रूप दिखाया था
अपमान जब भी हुआ, उस भाव का हमने संहार किया था

हर पात्र एक मर्यादा था उस पर ही जीता - मरता था
पर उसे ढाल बना तुम आज अपमानों का बाज़ार सजाते हो
जानते हो तुम, आज वो युग बीत गया और तुम बदल गए हो
लेकिन केवल आज अपनी खातिर हमे ही क्यों मोहरा बनाते हो

हम उस वक्त भी कमजोर नही थे और आज भी तुम लाचार नही
नर - नारी अलग नही,  त्याग - ममता मे हम थोड़ा बेहतर सही
हमने कुछ किया और कुछ सहा केवल तुम्हें बतलाने की खातिर
आज तुम अपने बल कुछ कर जाओ अपनी अगली पीढ़ी की खातिर

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

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