[एक पुरानी रचना - आज विजय दिवस पर शहीदो को समर्पित ]
लहू के दो रंग एक गम है तो एक खुशी
वतन पर कुर्बान होते है शहीद खुशी खुशी
दुख झेलकर हमे देते रहे वो सारी खुशी
आज़ादी को खून से सीचा उन्होने खुशी खुशी
हमारा खून अभी सस्ता नही हुआ है
उस मां से पुछो जिसने बेटा खोया है
समेट दुख के आंसू अर्थी पर फूल चढाये है
देश की खातिर आंचल को अपने कफन बनाया है
इतिहास गवाह है, पन्ने खून से है रंगे हुये
हमे आज़ादी देकर खुद है धरती मे सोये हुये
धन्य है येसे वीर जो शहीद हुये वतन के लिये
जिसकी खातिर कुर्बानी दी उसी मे है लिपटे हुये
धर्म और कर्म की खातिर भी खून बहाया है
दे लहू इन वीरो ने धर्म और समाज को बचाया है
बहा खून इतिहास मे नया अध्याय बनाया है
होकर फ़ना हमें जीने का नया रास्ता दिखाया है
जय हिंद !!!!! नमन शहीदो को
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
घायल सैनिक का पत्र - अपने परिवार के नाम...( कारगिल युद्ध )
जवाब देंहटाएंजय हिंद
माँ से---
माँ तुम्हारा लाडला रण में अभी घायल हुआ है...
पर देख उसकी वीरता को, शत्रु भी कायल हुआ है...
रक्त की होली रचा कर, मैं प्रलयंकारी दिख रहा हूँ ...
माँ उसी शोणित से तुमको, पत्र अंतिम लिख रहा हूँ...
युद्ध भीषण था, मगर ना इंच भी पीछे हटा हूँ..
माँ तुम्हारी थी शपथ, मैं आज इंचो में कटा हूँ...
एक गोली वक्ष पर कुछ देर पहले ही लगी है...
माँ, कसम दी थी जो तुमने, आज मैंने पूर्ण की है...
छा रहा है सामने लो आँखों के आगे अँधेरा...
पर उसी में दिख रहा है, वह मुझे नूतन सवेरा...
कह रहे हैं शत्रु भी, मैं जिस तरह सौदा हुआ हूँ...
लग रहा है सिंहनी के कोख से पैदा हुआ हूँ...
यह ना सोचो माँ की मैं चिर-नींद लेने जा रहा हूँ ...
माँ, तुम्हारी कोख से फिर जन्म लेने आ रहा हूँ...
पिता से---
मैं तुम्हे बचपन में पहले ही बहुत दुःख दे चुका हूँ...
और कंधो पर खड़ा हो, आसमां सर ले चुका हूँ...
तू सदा कहते ना थे, कि ये ऋण तुम्हे भरना पड़ेगा..
एक दिन कंधो पे अपने, ले मुझे चलना पड़ेगा...
पर पिता! मैं भार अपना तनिक हल्का कर ना पाया...
ले ऋण तुम्हारा अपने कंधो मैं आजीवन भर ना पाया...
हूँ बहुत मजबूर वह ऋण ले मुझे मरना पड़ेगा...
अंत में भी आपके कंधो मुझे चढ़ना पड़ेगा...
अनुज भाई से---
सुन अनुज रणवीर, गोली बांह में जब आ समाई...
ओ मेरी दायीं भुजा! उस वक़्त तेरी याद आयी...
मैं तुम्हे बांहों से आकास दे सकता नहीं हूँ...
लौट कर भी आऊंगा, विश्वाश दे सकता नहीं हूँ...
पर अनुज, विश्वाश रखना, मैं नहीं थक कर पडूंगा...
तुम भरोसा पूर्ण रखना, सांस अंतिम तक लडूंगा..
अब तुम्ही को सौंपता हूँ, बस बहना का याद रखना...
जब पड़े उसको जरूरत, वक़्त पर सम्मान करना...
तुम उसे कहना की रक्षा पर्व जब भी आएगा...?
भाई अम्बर में नजर आशीष देता आएगा...
पत्नी से---
अंत में भी तुमसे प्रिय, मैं आज भी कुछ मांगता हूँ...
है कठिन देना मगर, निष्ठुर हृदय ही मांगता हूँ...
तुम अमर सौभाग्य की बिंदिया सदा माथे रचना...
हाथ में चूड़ी पहन कर पाऊँ तक मेहंदी रचना...
बर्फ की ये चोटियाँ, यूँ तो बहुत शीतल लगी थी....
पर तेरे प्यार की उष्णता से, वे हिमशिला गलने लगी थी...
तुम अकेली हो नहीं इस धैर्य को खोने ना देना...
भर उठे दुःख से हृदय, पर आँख को रोने ना देना...
सप्त पद की यात्रा से तुम मेरी अर्धांगिनी हो...
सात जन्मो तक बजे जो तुम अमर वो रागिनी हो...
इसलिए अधिकार तुमसे बिना बताये ले रहा हूँ...
..मांग का सिंदूर तेरा मातृभूमि को दे रहा हूँ.....!!!!!!!!!!
- अटल बिहारी वाजपेयी.
जय हिंद !!!!! नमन शहीदो को......wonderful composition
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