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बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

आओ दीप जलाये ....




डर लगता है अँधेरे से
अंधकार के नाम से ही
हर भय इसमें समाहित हो जाता है 
और अंधेरो से दूरी बनाने में
हम सफल हो जाते है....


रोशनी की आवश्यकता है
तुम्हे भी – मुझे भी
इस अन्धकार से
अंत:करण की कालिमा से
मुक्ति दिलाने के लिए .....

मन की अनुकूलता
सुख का आभास कराती है
और प्रतिकूलता
दुःख के पहाड़ बनाती है...

आलस्य से सराबोर
और भागती जिन्दगी में हम
विकल्प खोजते नज़र आते है
लेकिन अपनी संकल्प शक्ति
हम खोते जा रहे है ...

मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार
पर भी छाया है मायाजाल का अन्धकार
आओ हम
अज्ञान, अधर्म, असत्य, अनीति और अन्याय
का मिटा कर अंधियारा
ज्ञान, धर्म, सत्य, नीति और न्याय
का दीप जलाए ..

कर संकल्प
अपनी कल्पना को साकार बनाये
मन के सच्चे ‘प्रतिबिम्ब’ को
अस्तित्व की कसौटी पर खरा उतारे
आओ निष्ठापूर्वक ये दीप जलाए

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २६/११/२०१६

रविवार, 23 अक्तूबर 2016

समझौता





एक लम्बे अंतराल के बाद
अंधेरो के आँचल से निकल
सूरज की किरणों से
लेकर चला था
कुछ रोशनी
और
एक योद्धा की  तरह
हौसलों का चौड़ा सीना लिए
कर्तव्य मार्ग पर
नैतिकता के
कठोर धरातल पर
ईमानदारी के पग भरते हुए
लक्ष्य को भेदने का
मूल्यों का अचूक अस्त्र लिए
चल पड़ा था .....

उजाले में भी
किस्मत का पत्थर
ठोकर दे गया
उम्मीद का घड़ा
टूट मिटटी में मिल गया
और
दोष मेरे सर मढ़
अंतर्मन को नियंत्रित कर
मुझे कटघरे में खड़ा कर गया...


मेरे अस्तित्व को
मिटाने की सुपारी लेकर
वक्त
किस्मत की आड़ में छिप गया
और किस्मत
साँसों को उनकी उम्र के सहारे छोड़
हंसती खिलखिलाती
मेरे जख्मो को हरा करती रही
और वेदना चुपचाप
सिसकती रही
आज शिकायत ने
वक्त और किस्मत की
साजिश से समझौता कर लिया


-      प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 
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