सोचता था,
कुछ करूँगा अपने लिए
कुछ समाज के लिए
कुछ देश के लिए
क्या मालूम था
ये टूट जायेंगे शीशे की तरह
कोसा पत्थर को
जिसने मेरे अरमानो के
शीशे को चूर किया
अरे !! ये तो पत्थर है
इसका क्या दोष
जिसने ये पत्थर फेंका
न जाने उसके पास मेरे लिए
क्या अरमान थे
दोष तो मेरा है
जिसने पत्थर को पास आने दिया
सोचा इस शीशे को
जोड़ दूँ जाकर, नया आकर दूँ इसे
परन्तु ये तो बिल्कुल टूट चुका है
सोच रहा हूँ कहीं डाल दूँ जाकर
नही तो ये मुझे , समाज और देश को
दुःख पहुंचाएंगे जिनके लिए
मेरे बहुत से अरमान थे .......
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
( यह रचना भी डायरी के पन्नो में दर्ज थी, आज इसे खुला वातावरण मिला)
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