सिसकियां लेती है मन की वेदना
झुंझलाती रहती है अपनी चेतना
हर मोड़ पर दिखते हैं अब बिखरे कांटे
ना जाने क्यों दिल से दिल को हम बांटे
प्यार का करते रहते है हम सब ढोंग
लेकिन हैं दुश्मन एक दूजे के हम लोग
खून मानवता का अब और सस्ता हुआ
जीना बेसुध दुनिया में और महंगा हुआ
अंगड़ाई जोश की लेती तो है जवानी
स्वार्थ कि खातिर बन जाती नई कहानी
फ़ैशन बन कर अब विलुप्त हो रही खादी
मूक रहकर खुली आंख से देख रहे बर्बादी
कुछ हक़ीकत है, कुछ है फंसाना
फ़िर भी जीने का ढूंढ़े हम बहाना
झुंझलाती रहती है अपनी चेतना
हर मोड़ पर दिखते हैं अब बिखरे कांटे
ना जाने क्यों दिल से दिल को हम बांटे
प्यार का करते रहते है हम सब ढोंग
लेकिन हैं दुश्मन एक दूजे के हम लोग
खून मानवता का अब और सस्ता हुआ
जीना बेसुध दुनिया में और महंगा हुआ
अंगड़ाई जोश की लेती तो है जवानी
स्वार्थ कि खातिर बन जाती नई कहानी
फ़ैशन बन कर अब विलुप्त हो रही खादी
मूक रहकर खुली आंख से देख रहे बर्बादी
कुछ हक़ीकत है, कुछ है फंसाना
फ़िर भी जीने का ढूंढ़े हम बहाना
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
( पुरानी कुछ रचनाओ में से एक आपके लिए )
Fir bhi ham jeene ka dhoondhe bahana...
जवाब देंहटाएंBhut khoobsoorat rachna Prati ji....