आज सोते सोते
मै बडबडाने लगा
हल्ला फिर मचाने लगा
दिन भर के ख्यालात
एक द्वन्द्द मचाने लगे
शायद कोई हार
आज बर्दाश्त न हुई
लड्ने वाला हर चेहरा
अंधेरे मे गुम सा था
मै जीत के लिये
हाथ पैर चला रहा था
दिल-दिमाग दोनो ही
कंही दूर खडे हंस रहे थे
मेरी हताशा पर
मुझे ही कोस रहे थे
ना कोई आस पास था
ना कोई हाथ आगे आया
मेरी अकेले की लडाई
खुद ही लडे जा रहा था
असहाय चिल्लाने लगा
आवाज़ अपनी डराने लगी
खौफ से आंखे खुली
नज़र इधर उधर दौडाई
देखा सब सो रहे थे
और मै जाग रहा था
फिर उसी डर से,खौफ से
जिसने अभी अभी
मुझे फिर मात दी है
फिर एक सोच जिंदा हुई
दिल को कठोर किया
कल मुझे जीतना है
हर रात मुझे हरा नही सकती
यह सोचकर फिर
सोने की कोशिश करने लगा
-प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल
good
जवाब देंहटाएंbahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
bahut hi sudar abhivaqti... Himmat naa haar ka haunshla bhrti......
जवाब देंहटाएंकल मुझे जीतना है
जवाब देंहटाएंहर रात मुझे हरा नही सकती
बहुत खूब ..यक़ीनन जीतना है
बहुत ही उत्साहित करने वाली रचना है प्रतिबिम्बा जी, शेयर करने के लिए धन्यवाद् l
जवाब देंहटाएंPratibimba Ji,
जवाब देंहटाएंNamaskar...Beautifully presented...thanks for sharing...
Regards...
Ajay Kumar Kala
kal ki jeet ka haunsla hi aadmi ko mahaan banaata hai
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