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शुक्रवार, 13 मई 2011

मेरी कविता




इसमें मै भी हूँ
इसमे तुम भी हो
इसमे घर भी है
इसमे परिवार भी है
इसमे समाज भी है
इसमे देश भी है
और विश्व भी है

मेरी कविता मे सब बतिया है

एकांत मे
कलम लिखती जाती है
कभी इसमे
प्रेम जागृत होता है
कभी इसमें
आक्रोश दिखता है
कभी इसमें
कुछ् सवाल होते है
कभी इसमे
खुद उत्तर बन जाता हूँ
कभी इसमे
एक टीस उठती है
कभी इसमें
असहाय नज़र आता हूँ
कभी इसमे
खुशी है तो कभी गम है

मेरी कविता मे सब बतिया है

जहां तक मेरी नज़र जाती है
जहां तक मेरी सीमा दिखती है  
जहां तक मेरी सोच ले जाती है
जहां तक जबाब मिल जाते है

मेरी कविता मे सब बतिया है

मेरी कविता तो मौसम है भावो की
मेरी कविता तो प्रतिबिंब है भावो की
मेरी कविता तो अहसास है भावो की
मेरी कविता तो खुशबू है भावो की

मेरी कविता मे सबकी बतिया है


-       प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

2 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी कविता में सब बतिया हैं........बिलकुल प्रति जी, आपकी रचनाओं में हर भाव, हर संवेग, हर रूप, हर रस एवं हर बात होती है......प्रेम हो या राजनीति,ममता हो या दया हर भाव बखूबी चित्रित कर देते हैं आप.....बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  2. aap sachmuch bahut sunder likhte hain ...ye lines bahut achhi hain ..

    मेरी कविता तो मौसम है भावो की
    मेरी कविता तो प्रतिबिंब है भावो की
    मेरी कविता तो अहसास है भावो की
    मेरी कविता तो खुशबू है भावो की

    जवाब देंहटाएं

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