नि:शब्द होता हूँ जब देखता हूँ नि:प्रभ तुझे
नि:सत्व है जीवन, नि:संकोच कहता हूँ तुझे
नि:स्पंद है चाह, नि:स्पृह है जीवन तेरा
नि:स्व सा हो गया है नवल सा मन तेरा
नक्तक सा दिखता है, नाचार क्यों विश्वास तेरा
नि:शस्त्र लगता है तू, नि:सार हर आक्रमण तेरा
नि:प्रयोजन कर्मो से नि:क्षिप्त होता है मान तेरा
नकबानी से डरता है तू, नि:कारण है ये डर तेरा
नि:शल्य नहीं जीवन, बस निर्भय हो पथ पर चल
निकषण से न अधीर हो, नि:क्षोभ हो कर्म करता चल
नि:शोध्य नही कुछ जीवन मे, नि:संकोच मान कर चल
निकुंज सा है ये तेरा संसार, इसे तू निकेत मान कर चल
नकबजन कर देता है नंश जीवन ,इसका तू ध्यान कर
नवागत है हर पल, नगावास सा नाच तू उसके आने पर
नास्तिक नही नि:कपट बन, नि:छल भाव से प्रेम कर
नंदित होगा मन तेरा, नर्मवत मुस्कान ला तू चेहरे पर
नि:स्वार्थ स्नेह को अपना, छोड़ दुश्मनी नि:शेष जीवन
में
नि:सीम है मंजिल तेरी, नि:सहाय न समझ इस दुनिया में
ले हाथों मे नवतिका, अब तू नानावर्ण जोड़ इस जीवन में
नवीभूत कर भाव अपने, नलिनी सा खिल इस बगिया में
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
निमज्जन हो सुन ....--very nice and thoughtful composition.
जवाब देंहटाएंआभार जोशी जी
हटाएंबड़थ्वाल प्रतिबिम्ब जी शव्दों का अद्भुत समावेश है आप की इस प्रस्तुति में 'न' वर्ण को आप ने प्रारम्भ में जिस तरह पकड़ा है और सम्पूर्ण प्रस्तुति के साथ बनाये रखा ये आप की कलम कई परिपक्वता का ही उदहारण है जिस-जिस पंक्ति पर नजर जाती है , अलंकर, शव्द शक्तियों की भरमार सी नजर आती है मानो वर्णों की बाढ़ सी आ गयी हो
जवाब देंहटाएं........... नि:शब्द होता हूँ जब देखता हूँ नि:प्रभ तुझे
नि:सत्व है जीवन, नि:संकोच कहता हूँ तुझे
नि:स्पंद है चाह, नि:स्पृह है जीवन तेरा
नि:स्व सा हो गया है नवल सा मन तेरा ................
राजेन्द्र जी बस कुछ शब्दों से परिचय हुआ तो भावो को समेट लिया .... आभार
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