मैं इठ्ठला रही थी
वो मुझे शायद देख रहा था
मैं शर्मा रही थी
और
वो बस शरारत कर रहा था
उसकी बातें
मुझे तरसा रही थी
उसकी अदाये
मुझे बुला रही थी
मैं भी मन
अपना बना चुकी थी
बस उसके एक इशारे को
हर पल तरस रही थी
दिल की उलझन को
अकेले सुलझा न पा रही थी
वक्त को परख रही थी
प्यार उसके लिए समेट रही थी
इशारा मिल ही गया
इंतज़ार को राह मिल ही गई
बसाया जिसे हृदय में
आज उसके हृदय में बस गई ...
[ एक भाव प्रेम की आस से प्रेम के पास तक ]
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
excellent composition
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