अंतिम
रचना....
अब
समय आ गया है
कलम
को विराम देने का
विचारों
पर पूर्ण विराम लगाने का
इस
वर्ष
कभी
थोड़ा,
कभी बहुत लिखा
और
क्या क्या न लिखा
कभी
उसने जो कहा या किया
दिल
ने जो समझा लिख डाला
कभी
मैंने जो सोचा या समझा
कभी
तुमने जो लिखवाया
अच्छा
- बुरा जो देखा
बस
लिखता रहा
कही-
अनकही समेट कर
शब्दों
के तराजू में तोलकर
भावों
से मोल भाव कर
खरीद
लिए पाठक दो चार
स्वयं
को पढ़
स्वयं
की पसंद बन
चित्रों
को उकेरता रहा
बन
कर स्याही
कही
दर्द,
कहीं प्यार
कोरे
पन्नों पर परोसता रहा
दौर
और बदलाव का साक्षी बन
अपने
इन हाथो से गवाही देता रहा
न
जाने कितनो को आहत किया
दोस्त
दुश्मन का पैमाना बना
कुछ
को साथ कुछ को दूर कर दिया
न्याय
अन्याय की लेकर अपनी समझ
फैसला
कभी
पक्ष,
कभी विपक्ष में लिखता रहा
अंगुली
उठाई भी और मोड़ी भी
किसी
को सम्मानित
किसी
को अपमानित किया
कलम
को कभी हथियार
कभी
पतवार बना
सामजिक
उतार चढ़ाव
का
रेखांकित कर दिया
खुशी
और गम को
जिन्दगी
के रंगो से रंग दिया
वक्त
को बादशाह करार दे
नियति
का दामन थाम लिया
हार-जीत
की परवाह किये बिना
सफलता
असफलता लिखता रहा
आपको
कितना
सच कितना झूठ लगा
कितना
पसंद कितना नापसंद किया
कितने
करीब कितने दूर हुए
कितने
अपने कितने पराये हुए
नहीं
जानता
बस
इतना जानता हूँ
हर
शब्द हर भाव
दिल
से लिखकर
समर्पित
कर दिया आपको
लेकिन
इस
अंग्रेजी नववर्ष के अंत में
अपने
शब्दों को
अंतिम
रचना समझ
२०१६
को अर्पित कर
अब
अलविदा कहता हूँ
हाँ
खट्टा मीठा याद रहेगा
लेकिन
विश्वास
नए
साल में
नया
सृजन,
नई सोच
"मेरा
चिंतन"
मेरा
'प्रतिबिम्ब' बन
'क्षितिज' की दूरी तक
इन्द्रधनुष
सी आभा लिए
हर
शब्द और भाव की किरण
मेरे
अपनों तक पहुँचती रहेगी
मेरा
अस्तित्व
परिणाम
का मोहताज़ नहीं
बस
लिखूंगा कहूँगा वही
जो
लगेगा अंतर्मन को सही
शुभम
.....
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २७/१२/२०१६
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणी/प्रतिक्रिया एवम प्रोत्साहन का शुक्रिया