किस्मत का किया था शुक्रिया
जब उनसे हमारी पहली मुलाक़ात हुई थी
ख़ुशी बनकर साथ चले लेकिन
भूल गया था किस्मत बदलते देर नहीं लगती
इन रिश्तों की अजब कहानी
याद करें न कोई हमें, फिर भी इंतज़ार रहता है
नम आँखे झूठ बोलती नहीं
दर्द दिया जिसने, वही दुआओं में मेरी रहता है
सिखाया था हमने प्यार जिन्हें
वे जमाने से, गजब की बेरुखी सीख कर आये है
हद तो तब हो गई यारों
जब वो सीख कर, हम पर ही आज़माने लगे है
दिल को कई बार तसल्ली देता हूँ
लेकिन उसे हौसला देते हुए, दिल रो पड़ता है
खोलूँ कैसे 'प्रतिबिम्ब', ये बंद दरवाज़ा
जबकि जानता हूँ वो अलविदा कहने आये हैं
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३०/३/२०१७
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