चाहे तुम इंकार करो कितना
मुझे मिलना ही है तुमसे एक बार
नसीब मिलकर बिझड़ना ही सही
तुम्हारा दीदार करना है मुझे एक बार
दिन रात बिछोह की आग ही सही
मुझे उस आग मे जलना है एक बार
तुझ तक पहुँचना कठिन ही सही
पहुंचूंगा तो सही तुझ तक एक बार
मेरे होने को करो नज़रन्दाज ही सही
मर कर एहसास कराना है तुम्हें एक बार
तुम्हें मेरे एहसासों का एहसास न सही
मुझे अंगारों सा जलता देख लेना एक बार
शायद मेरी राख से मिलने आओगे तो सही
बस ठंडी राख को छू लेना तुम एक बार
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ६.११.२०१७
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