बने हिंदी मेरी पहचान
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हिंदी है मेरा मान, हिंदी है मेरा सम्मान
राज भाषा है, अभी केवल इसकी पहचान
टीस उठती है, जब देखता मैं ये अपमान
वर्षो से सीने में मेरे, सुलग रही ये चिंगारी
कब बन कर राष्ट्रभाषा, बने हिंदी मेरा स्वाभिमान
बने हिंदी मेरी पहचान
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हिंदी है मेरा मान, हिंदी है मेरा सम्मान
राज भाषा है, अभी केवल इसकी पहचान
टीस उठती है, जब देखता मैं ये अपमान
वर्षो से सीने में मेरे, सुलग रही ये चिंगारी
कब बन कर राष्ट्रभाषा, बने हिंदी मेरा स्वाभिमान
बने हिंदी मेरी पहचान
मेरे बचपन की भाषा, यौवन का तुम प्रेम हो
मेरे रोम-रोम में बसी, वर्षो का तुम शोध हो
भावों का तुम शृंगार, सपनों की तुम ओज हो
मेरे हृदय की धड़कन, भविष्य की तुम सोच हो
चाहता बन कर राष्ट्रभाषा, बने हिंदी मेरा अभिमान
बने हिंदी मेरी पहचान
देवनागरी है हिंदी का मूल, संस्कृत इसका स्रोत है
समाहित कई भाषाएँ, हर भारतीय को जोड़ने का सेतु है
अथाह सागर सा इसका शब्दकोश, भाषा ये वैज्ञानिक है
अपनत्व का बोध कराती हिंदी, वसुदैव कुटुंब इसका सार है
अस्तित्व इसका सदैव बना रहे, बने हिंदी मेरा गौरवगान
बने हिंदी मेरी पहचान
सदियों से परतंत्रता का दंश झेल रही, मेरी हिंदी
आज भी राजनीति का मोहरा बन रही, मेरी हिंदी
भाषाओँ से भी भाषा का द्वंद्ध झेल रही, मेरी हिंदी
अपनों के ही तिरस्कार से आज जूझ रही, मेरी हिंदी
धर्म-युद्ध राष्ट्रभाषा का जीतकर, बने हिंदी मेरी पहचान
बने हिंदी मेरी पहचान
संस्कृत संस्कृति की परिचायक, हिंदी की पृष्ठ भूमि न्यारी
श्यामसुन्दर-आचार्य शुक्ल, हजारी-बड़थ्वाल से इसके पुजारी
माखनलाल-सुमन-मैथली, नागार्जुन-अज्ञेय-भारती से उत्तराधिकारी
द्विवेदी-निराला-सुभद्रा, पन्त-दिनकर-महादेवी से इसके अनुरागी
राष्ट्रभाषा बन शीर्षथ हो हिंदी, होंगे पूरे तब हमारे अरमान
बने हिंदी मेरी पहचान
जिस राष्ट्र कि अपनी भाषा नहीं, वो गूंगा कहलाता है
स्वतंत्र होकर भी भारत, गुलाम अंग्रेजी का कहलाता है
उचित प्रतिनिधित्व न मिलने से, विकास अवरोधित होता है
है विश्व गुरु मेरा भारत ‘प्रतिबिम्ब’, राष्ट्रभाषा के गौरव से अछूता है
यह वैभव हिंदी को मिल जाए, हर भारतीय करे इसका सम्मान
बने हिंदी मेरी पहचान
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २७/१२/२०२१
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