अक्षरावाणी साप्ताहिक पत्रिका के काव्य मंजरी पृष्ठ में प्रषित
मुझमें एक जोत जला दे माँ
हे हंसवाहिनी, करता मैं तेरा ही स्मरण
हे माँ शारदे, ज्ञान का तू कर बीजारोपण
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
मेरे ज्ञान का, तू अब भंडार भर माँ
हो मुझमें संचार, तेरे प्रकाश का माँ
है अर्चना तुझसे, मुझे आशीष दो माँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
हूँ अज्ञानी मैं, विद्या वरदान चाहता हूँ
वीणा के तारो से, सुरों का ज्ञान चाहता हूँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
प्रेम और क्षमा बन, मुझमें वास कर माँ
सत्य और मीठा बोलूँ, ऐसा वरदान दे माँ
मन तिमिर सा
मुझमें तू एक जोत जला दे माँ
सुंदर प्रार्थना ।
जवाब देंहटाएं