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मंगलवार, 2 अगस्त 2022

गढ़वाली कुमाऊँनी भाषाओं की संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होने की मांग तेज

त्तराखण्ड राज्य में हिन्दी प्रथम व् संस्कृत द्वितीय भाषा का स्थान रखती है.  लेकिन भारत के अन्य राज्यों की तरह देव भूमि उत्तराखण्ड की अपनी भाषाएँ हैं. जिसमे मुख्यत: गढ़वाली व् कुमाऊँनी भाषा का अस्तित्व सैकड़ो वर्षो से हैं. गढ़वाली आर्य भाषाओं के साथ ही विकसित हुई लेकिन 11—12वीं सदी में इसने अपना अलग स्वरूप धारण कर लिया था.   

डॉ अंकिता आचार्य पाठक ने अपने एक लेख में लिखा है:

“लगभग एक हजार वर्षों से भाषा के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने वाली गढ़वाली तथा कुमाऊँनी का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. उल्लेखनीय है कि तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी से पहले सहारनपुर से लेकर हिमाचल प्रदेश तक फैले गढ़वाल राज्य में सरकारी कामकाज के लिए गढ़वाली भाषा का ही प्रयोग होता था. देवप्रयाग मंदिर में महाराज जगत पाल का वर्ष 1335 का दानपत्र लेख, देवलगढ़ में अजयपाल का पंद्रहवीं सदी का लेख, बदरीनाथ आदि स्थानों में मिले शिलालेख और ताम्रपत्र गढ़वाली भाषा के समृद्ध और प्राचीनतम होने के प्रमाण हैं. इसी प्रकार यह भी उल्लेख मिलता है कि लगभग आठवीं से सोलहवीं शताब्दी तक चम्पावत कूर्माचल की राजधानी रहा और कूर्माचली यहां के राजकाज की भाषा थी. कुमाऊं में चंद शासन काल के समय भी कुमाऊँनी राजकाज की भाषा थी. राजाज्ञा कुमाऊँनी में ही ताम्रपत्रों पर लिखी जाती थी. गढ़वाली तथा कुमाऊँनी के ऐतिहासिक महत्व को स्पष्ट करने वाले ऐसे कई उदाहरण हैं.”

जौनसारी भाषा सहित कई और भाषाएँ उत्तराखंड की संस्कृति व् सभ्यता का हिस्सा है पर इनमें साहित्य बहुत कम लिखा गया है या कहें न के बराबर लिखा गया है. उत्तरप्रदेश से अलग होने के पश्चात् यह मांग जोड़ पकड़ने लगी कि उत्तराखण्ड की भाषाओ को भी संविधान की 8 वीं अनुसूची में स्थान मिलना चाहिए.  गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा में साहित्य व्याकरण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है साथ नए लेखक भी इसमें अब बढ़ - चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं. कुछ लोगों को मानना है कि उत्तराखण्ड की अपनी अलग भाषा व उसकी लिपि हो और वे इसके लिए अपनी और से प्रयास कर रहे हैं. लेकिन अधिकांश साहित्यकार कुमाऊँनी गढ़वाली को उसके मौलिक रूप में उत्तराखण्ड में भाषा के रूप मान्यता देने के पक्षधर है जो कि उचित भी है इतिहास, साहित्य व सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार. जिसमें भाषा सहज रूप से अपने क्षेत्रों में विकास भी करेगी और जन मानस की भाषा है भी और बन भी सकेगी. इसके विपरीत कोई खिचड़ी भाषा यदि थोपने का प्रयास हुआ तो अपनी - अपनी भाषा का शब्दकोष का भंडार तहस नहस भी होगा साथ ही गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा के आधार, उसकी मौलिकता और मातृभाषा के साथ खिलवाड़ होगा. 

भाषा का विकास, उसका सृजन व संवर्धन हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए. मेरा मानना है कि केंद्र व राज्य सरकार को शीघ्रातीशीघ्र कुमाऊँनी और गढ़वाली को आधिकारिक दर्जा देना चाहिए और उनके संवर्धन हेतु समुचित प्रबन्ध करने चाहिए.

कई संगठन संविधान की 8वीँ अनुसूची में शामिल करने हेतु कार्य कर रहे हैं. 2012 से दिल्ली में स्थापित संस्था ‘उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच’  इसमें सबसे प्रमुखता से अपनी भूमिका निभा रहा है. यह मंच 2016 से गढवाली कुमाऊँनी भाषा का शिक्षण ग्रीष्मकालीन कक्षाओं का आयोजन कर रहा है. विगत वर्ष 2018 में दिल्ली एनसीआर में लगभग 22 केन्द्रों में गढ़वाली-कुमाउनी कक्षाओं को आयोजन कर चुका है  2013 से महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल साहित्य सम्मान गढ़वाली के वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकारों को प्रदान करता आया है. मंच हर वर्ष साहित्य एवं समाज सेवा आदि कि लिए प्रत्येक चयनित प्रतिभा को 21 हजार रूपये की राशि भी प्रदान करता है साथ समाज के वर्गों व् व्यक्तित्वों को ही आर्थिक सहायता करता है व् सामाजिक मुद्दों को भी जोर शोर से उठाता है. मंच समय-समय पर कई कवि गोष्ठियों, भाषा सेमिनार एवं अन्य साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन करता आ रहा है और भाषा आन्दोलन को लेकर अपनी अग्रणी भागीदारी निभा रहा है. 

उत्तराखण्ड लोकभाषा मंच भाषा के मानकीकरण को लेकर भी सक्रीय है. भाषा अधिवेशन द्वारा इसकी शुरुआत हो चुकी है. इस वर्ष गढ़वाल भवन दिल्ली, में हुए अधिवेशंन में लगभग उत्तराखण्ड व् दिल्ली एनसीआर के सैकड़ो साहित्यकार सम्मिलित हुए. जहाँ पर शब्दों के मानकीकरण पर चर्चा भी हुई और उन्हें भाषा में अधिकारिक रूप से जोड़ा भी गया. साथ ही 8 वीं अनुसूची में शामिल करने हेतु भारत सरकार को ज्ञापन देने का प्रस्ताव भी पास हुआ. गृह मंत्रालय व् पीएम आफिस में इसे दिया भी जा चुका है. 

दिल्ली में उत्तराखण्ड के चुने हुए प्रतिनिधियों को मिलकर, उन्हें संसद में भाषा बनाये जाने हेतु बात रखने एवं प्रयास करने के लिए “उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच का शिष्टमंडल” लगातार उनसे भेंट कर अपनी आवाज बुलंद कर रहा है. मंच गढ़वाली कुमाऊँनी को भाषा का दर्जा दिलाने हेतु दृढ़संकल्प के साथ प्रयत्नशील भी है.


अभी तक शिष्टमंडल उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री व् सांसद श्री तीरथ सिंह रावत जी, केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री व सांसद श्री अजय भट्ट जी, सांसद श्री अजय टम्टा जी व भाजपा मिडिया प्रभारी व् राज्य सभा सांसद श्री अनिल बलूनी जी से मिलकर ज्ञापन सौंप चुका है. सभी ने भाषा के लिए की जाने वाले इस पहल के लिए बधाई व् शुभकामनायें दी है साथ ही संसद में इसे रखने का भरोसा भी दिया और इस पर हर रूप से मदद का आश्वासन भी दिया है.  



शिष्टमंडल में ‘उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच’- दिल्ली के संरक्षक व मयूर विहार जिला भाजपा अध्यक्ष डॉ. बिनोद बछेती, वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेश चंद्र घिल्डियाल,  श्री दर्शन सिंह रावत, श्री जयपाल सिंह रावत, श्री प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, श्री रमेश हितैषी, श्री जगमोहन रावत, श्री सुशील बुडाकोटी, श्री अनिल पन्त, श्री भगवती प्रसाद जुयाल, योगाचार्य डॉ. सत्येन्द्र सिंह, व उत्तराखण्ड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक श्री दिनेश ध्यानी जी की उपस्थिति रही है. 

उत्तराखण्ड लोकभाषा साहित्य मंच सभी साहित्यकारों व गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा के बोलने वालो को आवाहन देता है कि आइये इस यज्ञ में अपने समय व सहयोग की आहुति अवश्य दें.

जय उत्तराखण्ड ! जय हिन्द !

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

2 अगस्त, 2022

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