मेरा सनातन व्यक्तित्व, कुछ बदला सा है
इस पर पाश्चात्य का रंग, बेहिसाब चढ़ा है
घट रहा अपनत्व, अब छूट रहा समर्पण है
आज हकीकत में, मेरा यही तो आवरण है
मेरे अपने, संस्कृति और संस्कार खो रहे हैं
इसआवरण के नीचे, अपनी मौत मर रहे है
परम्परा आक्रोश की, अब बुझदिल हो गई है
प्रतिशोध मेरा, अब शस्त्र विहीन हो गया है
नैतिकता का दामन, अब छूटता जा रहा है
प्रमाणिकता, अब परिहास बन कर रह गई है
इस पर पाश्चात्य का रंग, बेहिसाब चढ़ा है
घट रहा अपनत्व, अब छूट रहा समर्पण है
आज हकीकत में, मेरा यही तो आवरण है
मेरे अपने, संस्कृति और संस्कार खो रहे हैं
इसआवरण के नीचे, अपनी मौत मर रहे है
परम्परा आक्रोश की, अब बुझदिल हो गई है
प्रतिशोध मेरा, अब शस्त्र विहीन हो गया है
नैतिकता का दामन, अब छूटता जा रहा है
प्रमाणिकता, अब परिहास बन कर रह गई है
आकांक्षाओं और स्वार्थ से, पोटली भरी है
गठरी पाप की, रोज भरती ही जा रही है
हमारी विरासत धीरे - धीरे सिमट रही है
समाज और देश, मौन धारण किये हुए हैं
धर्म और कर्म अब सियासत बन चुका है
तेरे और मेरे बीच में, कोई तीसरा खड़ा है
दिखता है, दिखाता है और शोर मचाता है
ये तीसरा आदमी, हमारी जड़े खोद रहा है
संवेदनाओं पर, सबकी विराम लग चुका है
आदर, मान व सम्मान अब बिक चुका है
गठरी पाप की, रोज भरती ही जा रही है
हमारी विरासत धीरे - धीरे सिमट रही है
समाज और देश, मौन धारण किये हुए हैं
धर्म और कर्म अब सियासत बन चुका है
तेरे और मेरे बीच में, कोई तीसरा खड़ा है
दिखता है, दिखाता है और शोर मचाता है
ये तीसरा आदमी, हमारी जड़े खोद रहा है
संवेदनाओं पर, सबकी विराम लग चुका है
आदर, मान व सम्मान अब बिक चुका है
संस्कृति, संस्कार और साहित्य धरोहर है
प्रेम, शौर्य और बलिदान हमारी पहचान है
जीवंत संस्कृति धारा, करती अनुप्राणित है
विविधता में एकता, अनुबंधन स्थापित है
राष्ट्र प्रथम का भाव ही, सच्ची देशभक्ति है
हमारा सामर्थ्य व योग्यता, राष्ट्रिय शक्ति है
सत्ता व शक्ति को, वैधता से जोड़े रखना है
अधिकार व दायित्व का, अंतर समझना है
आज प्रतिबिम्ब का, बस इतना ही कहना है
हटा नकली आवरण, कृतज्ञता को बढ़ाना है
प्रेम, शौर्य और बलिदान हमारी पहचान है
जीवंत संस्कृति धारा, करती अनुप्राणित है
विविधता में एकता, अनुबंधन स्थापित है
राष्ट्र प्रथम का भाव ही, सच्ची देशभक्ति है
हमारा सामर्थ्य व योग्यता, राष्ट्रिय शक्ति है
सत्ता व शक्ति को, वैधता से जोड़े रखना है
अधिकार व दायित्व का, अंतर समझना है
आज प्रतिबिम्ब का, बस इतना ही कहना है
हटा नकली आवरण, कृतज्ञता को बढ़ाना है
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, 25 दिसम्बर 2022
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