हटी कुछ धूल, चेहरा धुंधला सा है
दर्पण में चेहरा, अपरिचित सा है
अंतर्मन कुछ, चित परिचित सा है
पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है
चाह भी, बदलने लगी है अब राह
पथराये चक्षु, निकलती बस आह
ग़मों की धरती, मिलती नहीं थाह
पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है
छिप रही किरण, उजाले की ओट से
सिमट रहा रिश्ता, अपनों की चोट से
बढ़ती रही दूरियां, मन उपजे खोट से
पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है
रास्तों के सुमन, मुरझा गए धूप में
सिमट रही आभा, उजालों की मौज में
गूँज रही सदा, खोखले से आवरण में
पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 20/3/2023
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