नई सुबह, नया दिन
बीत गये कुछ लमहे
अब रात होने को आई
क्या अलग था कल से
सोचने लगा इस शाम से
बीत गये कुछ लमहे
अब रात होने को आई
क्या अलग था कल से
सोचने लगा इस शाम से
कुछ भी नहीं बदला
क्या बदला मैं ?
क्या बदले तुम ?
क्या बदल गये वो ?
बदला तो क्या बदला ?
दिन वही, रात वही
फिर क्या बदला ?
तुम वही, मैं वही
फिर क्या बदला ?
भूख वही, प्यास वही
फिर क्या बदला ?
तुम वही, मैं वही
फिर क्या बदला ?
भूख वही, प्यास वही
फ़िर क्या बदला ?
हँसी वही, आँसू वही,
फ़िर क्या बदला ?
ईर्ष्या वही, प्यार वही
फिर क्या बदला ?
रिश्ते वही, नाते वही
फिर क्या बदला ?
दर्द वही, पीड़ा वही
फिर क्या बदला ?
रात की काली स्याही में
सुबह की उभरती लाली में
शायद सुबह कुछ बदल जाए
इसी आस में कल के इंतजार में
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
( यह भी मेरी पुरानी रचनाओ से ली गई है )
"रात की काली स्याही में
जवाब देंहटाएंसुबह की उभरती लाली में
शायद सुबह कुछ बदल जाए
इसी आस में कल के इंतजार में"
इन पंक्तियों का जवाब नहीं...
रचना अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई।
एक नयी सुबह के इन्तजार में लिखे सुन्दर भाव !!!
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