-फिर भी ना जाने क्यो-
प्रेम अर्थ है,
प्रेम समर्थ है,
फिर भी ना जाने क्यो व्यर्थ है॥
प्रेम आरजू है,
प्रेम तपस्या है,
फिर भी ना जाने क्यों निराशा है॥
प्रेम चेष्टा है,
प्रेम निष्ठा है,
फिर भी ना जाने क्यों रुठा है॥
प्रेम शक्ति है,
प्रेम अनुभूति है,
फिर भी ना जाने रुकी अभिव्यक्ति है॥
प्रेम पावन है,
प्रेम नादान है,
फिर भी ना जाने क्यो परेशान है॥
प्रेम शान है,
प्रेम ईमान है,
फिर भी ना जाने बना क्यों हैवान है॥
प्रेम गीत है,
प्रेम जीत है,
फिर भी ना जाने मिलती क्यों हार है॥
प्रेम समर्थ है,
फिर भी ना जाने क्यो व्यर्थ है॥
प्रेम आरजू है,
प्रेम तपस्या है,
फिर भी ना जाने क्यों निराशा है॥
प्रेम चेष्टा है,
प्रेम निष्ठा है,
फिर भी ना जाने क्यों रुठा है॥
प्रेम शक्ति है,
प्रेम अनुभूति है,
फिर भी ना जाने रुकी अभिव्यक्ति है॥
प्रेम पावन है,
प्रेम नादान है,
फिर भी ना जाने क्यो परेशान है॥
प्रेम शान है,
प्रेम ईमान है,
फिर भी ना जाने बना क्यों हैवान है॥
प्रेम गीत है,
प्रेम जीत है,
फिर भी ना जाने मिलती क्यों हार है॥
- प्रतिबिम्ब बडथ्वाल
(पुरानी रचना आप लोगो के लिये दूसरे ब्लाग से)
प्रेम के दो रूप है, कभी छाँव है कभी धूप है.
जवाब देंहटाएंप्रेम की सुंदर अभिव्यक्ति..बढ़िया रचना..बधाई!!!
kyaa baat hai..........bada accha likh jada hai.. :))
जवाब देंहटाएंTUHI MERI AARJU HAI TUHI HAI MERI BANDGI
जवाब देंहटाएंJINA NAHIN PYAAR BIN VIYARTH HAI MERI JINDGI
SACH POOCHO AAJ YE MAN UDAAS KYON HAI
PIYAASE SUKHE LABON PAR NAAM TERA KYON HAI.
Prati ji
जवाब देंहटाएंaasha nirasha kee beech prem
Interesting !