आज कुछ गुमसुम सा था
मन मे कुछ उतार चढाव सा था
मन के भीतर कुछ ज्वार भाटा सा था
अहसास कुछ चावल आटा सा था
कुछ चुन सकता था कुछ सब मिला सा था
वक्त भी कुछ हमसे जला भुना था
हर रिश्ते पर कुछ प्रश्न खडे थे
अपने ना जाने क्यो सडे पडे थे
हम भी बस अनजान खडे थे
अपनो से हम भी कुछ अडे खडे थे
दोस्त वे भी दूर खडे थे
जिनके लिये हम भी कभी लडे थे
जिसने अपना जाना वो मुहं फुलाये खडा था
हाथ जिसका थामा वो भी अकडा खडा था
दीन दुनिया की रस्मो मे जकडा खडा था
हर दुशमन भी सामने अकडा खडा था
हर राह में भावो का यू रोड़ा खडा था
मुसीबत का सामने जैसे जोडा खडा था
इतने मे आई मन्द सी हवा
छट गया जो फैला था धुआं
जो सोचा न था वो हुआ
ना जाने कैसे ये सब हुआ
मन मे फिर एक अहसास हुआ
हर बात मे उनका फिर दीदार हुआ
-प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल , अबु धाबी, यू ए ई
▬● प्रति भईया , अपनों के बीच बेगाना , गुमनाम ही तो है......
जवाब देंहटाएं(my business site ☞ Su-j Helth ☞ http://web-acu.com/ )
इतने मे आई मन्द सी हवा
जवाब देंहटाएंछट गया जो फैला था धुआं
जो सोचा न था वो हुआ
ना जाने कैसे ये सब हुआ
मन मे फिर एक अहसास हुआ
हर बात मे उनका फिर दीदार हुआ.........प्रति जी बहुत ही सुंदर अहसास .......और भाव ............शुभं