14 अगस्त 2008 को लिखी एक रचना इस ब्लाग मे लिख रहा हूँ
तिरंगा हमारी आन है बान है
हर हिंदुस्तानी की ये शान है
शहीदों की कुर्बानी की अलग कहानी
कुछ गोली खाकर शहीद कहलाये
कुछ फ़ासी के फ़ंदे पर झूल गये
कुछ ने देश के लिये किया समर्पण
कुछ ने किया सब कुछ अपना अर्पण
आज हम हर माने में स्वतंत्र है
लेकिन फ़िर भी बिगड़े सारे तंत्र है
गरीबी अमीरी की खाई बढती जा रही
आंतक की बू हर दिन फैल रही
राजनीति भी खूनी - खेल खेल रही
आजादी के जशन हम हर साल मनाते है
लेकिन मानवता को हर पल भूलते जा रहे है
देश और लोग उन्नति की ओर अग्रसर है
आम जिदगी फ़िर भी इससे बेअसर है
ढूँढते रहते ये सब किसका कसूर है?
आओ आज तिरंगा फ़िर लहराये
अमीरी गरीबी का ये भेद मिटाये
राजनीति से हटकर प्रेम फैलाये
जाति - भाषा का ये जाल हटाये
खुद को सच्चा हिन्दुस्तानी कहलाये।
वन्दे मातरम!
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, आबूधाबी
मानवता को हर पल भूलते जा रहे है
जवाब देंहटाएं..............ये आपने कहा..और सच है। मैं सोचता हूं मानव समाज की स्थितियां शायद तानाशाह मुल्क़ों की बेहतर होंगी। इतना बड़ा आशावाद आपका देश के प्रति प्रेम है..हक़ीक़त ज़रा दूसरी तरफ़ है, उसके लिए अल्फ़ाज़ कमतर होंगे
-प्रमोद कौंसवाल (Kaunswal pramod)
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंसादर
समीर लाल
काश ये भावना हर हिंदुस्तानी और खासतौर टोपी वालों में हो..जय हो
जवाब देंहटाएंAwesome blog you have introduced.
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