आनंदित मन से
धर्म कर्म का कर अनुसरण
नित्य पढ़ समझ कर
शब्द भावो का
कर हृदय में अनुकरण
बना कर उसे संस्कार
पहले राम नही हनुमान बन
कर समर्पण ....
गहराई में उतर
लेकर ज्ञान अर्थ का
भावार्थ का कर संज्ञान
स्वयं में कर रूपांतरित
उलझ नही सुलझ कर
सुन कर नही समझ कर
पहले कृष्ण नही अर्जुन बन
कर समर्पण....
प्रेम का अहोभाव लिए
प्रतिरोध का कर विरोध
शून्य कर चित्त को
चैतन्य को प्राप्त कर
गुजर कर अग्नि से
इर्ष्या का कर अंतिम संस्कार
गुरु नही पहले शिष्य बन
कर समर्पण ....
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २०/११/२०१६
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