अट्टहास करती
मुंह चिढ़ाती जिन्दगी
प्रचंडता के पैमाने
तोड़ती
अंसंख्य आवाजे
तथाकथित अपनों के
ढेर सारे निर्देश
वक्त के असंख्य
घाव
वेदना देते शब्द
बाण
सामाजिक धुएँ की
घुटन
मूर्च्छित सा घायल
अंतर्मन
स्वाभिमान की खातिर
बस लाश न बन सका
बरसों की निष्ठां
को
ठेंगा दिखाती दूरियाँ
मुस्कराहट की आड़
मे
कटुता का तीखा प्रहार
रिश्तों की अग्नि
परीक्षा मे
असफल होते कई नाम
क्या खोया और क्या
पाया
आज नहीं गिनना चाहता
फिर भी
सब पाया ही है आज
तक
सुख - दुःख, दोस्त - दुश्मन
खोया वक्त व् विश्वास
आज तक
यही मेरी इस साल
की 'अंतिम बात'
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३१/११/२०१७
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