जीवन का शाश्वत मूल्य लिए
अनेको भावों का बिम्ब समेटे
रस गंधो से झंकृत हो कर
भावप्रवणता सहित अभिव्यक्ति
बिखेर जाती सुगंध और मादकता
सृजनता बनती फिर मेरा पैमाना
होता फिर एक नया सृजन
राग विराग की लेकर सार्थकता
उकेर देता मौन हृदय का वार्तालाप
हर संवेदना का लेकर उद्बोधन
भावाभिव्यक्ति का लेकर उल्लास
न होता आडंबर न बढ़ता लालच
सृजनता बनती फिर मेरा पैमाना
होता फिर एक नया सृजन
यथार्थ के परिवेश में शब्द भाव
सामाजिक विषमता पर करते चोट
हर विवशता का कर सटीक चित्रण
लिख जीवन दर्शन से साक्षात्कार
जीवटता और जड़ता को कर स्वीकार
सृजनता बनती फिर मेरा पैमाना
होता फिर एक नया सृजन
रूठते इठलाते मेरे अक्षर - अक्षर
कभी बूँद, कभी बन जाते समंदर
आँख मिचौली संग हँसते रुलाते शब्द
हर हृदय की लिखकर यूं पटकथा
जैसे शब्दों का 'प्रतिबिम्ब' से हो अनुबंधन
सृजनता बनती फिर मेरा पैमाना
होता फिर एक नया सृजन
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ०४/०१/२०१८
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