अकेले
में ...
अकेले
में
रोने
के बाद
आँखों
से दिखती है
एक
दुनिया
जिसमे
सब कुछ
साफ़
साफ़ नज़र आता है
ये
वही दुनिया है
जिसने
मजबूर किया
आंसुओं
को जन्म लेने से
लेकिन
आँखों
में पड़ी
दुनियादारी
की गंद
आखिर
निकल गई ...
दुनिया
में जितने लोग
उतने
ही
इल्जाम
लिए सर पर
अनगिनत
अंगुलियाँ
उठती
और भेद देती
खंजर
की तरह
मेरे
अस्तित्व को गहराई तक
जख्म
नासूर बन रिसते रहे
कुरेदते
हुए जख्मों पर
नमक
डालने की प्रक्रिया में
सक्रिय
मेरे अपने....
अँधेरे
से डरी और
सिहरी
हुई मनोदशा
निढ़ाल
होकर रेंगती हुई
ऐसे
में
पौ
फटने का इंतजार
किसे
नही होता
लेकिन
आँखों पर
और
किस्मत पर
अँधेरे
की काली स्याही
अपने
हस्ताक्षर कर चुकी हो
तो
आशा और उम्मीद
करना
बेमानी होगा......
- - प्रतिबिम्ब
बड़थ्वाल २९/०१/२०१७
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