मेरे हृदय और
मस्तिष्क के पटल पर
अंकित है
कई घावों के निशान
कुछ भरे - भरे से,
कुछ अभी भी रिसते हुये
कुछ नासूर बन
शिकायत को मजबूर
ना चाहते हुये भी
पेश कर देता हूँ
कई बार उन्हें
खुद की अदालत में।
खुद की पैरवी करते हुये
दर्जनो केस तारीख पर
लाइन लगाए खड़े है
निर्णय में कुछ
आजीवन मुक्ति की सज़ा पा जाते हैं
कुछ तारीख पा हिस्सा बने रहते हैं
और कुछ स्मृति से
मिट जाने की कड़ी सज़ा पा जाते है
स्मृतियों की काल कोठरी में
बंद है इसमें सैकड़ो चेहरे
और
उन चेहरों से सरकते मुखौटे
भावनाओं को कुचलती
सपनों को तोड़ती हुई
बेजान वेदनाओं और
यातनाओं की लंबी सूची है
खिलखिलाहट
और उम्मीद का घुटता गला
छटपटाता तो है पर
चीख कर भी शोर नहीं कर पाता है
संघर्ष मुझे करना है, जानता हूँ
वक्त के छिपे प्रहार
और किस्मत की मार
करते है मेरे जीवन का शृंगार
यह भी जानता हूँ
कई चेहरे शामिल है
मुझे हराने की साजिश में
लेकिन उन्हें
बेनकाब तो करना है
आज नहीं तो कल
जो खोया है वो पाना है
रुक जाना नहीं, चलना है
साम, दाम, दंड, भेद
का कहीं अनुसरण कर
कर्तव्य, निष्ठा और समर्पण
इस युद्ध में मेरे शस्त्र है
मंजिल जो मेरी लक्ष्य बनी
बस मुझे अब वहाँ पहुँचना है
ये मेरी अपनी अदालत में
दिया गया
चंद पंक्तियों का फैसला है
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ०५/११/२०२०
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
नमस्कार व आभार स्वेता जी। अवश्य उपस्थित रहूँगा। शुभम
जवाब देंहटाएंउत्तम फैसला ... जानकर खुशी हुई..
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंकृपया ब्लॉग फॉलोअर्स गैजेट जोड़े अपने ब्लॉग पर ताकि पाठक आपका ब्लॉग फॉलो करें और आपकी नयी रचनाओं की सूचना प्राप्त कर सके।
सादर।
जी स्वेता जी है पहले से ही। स्क्रीन के राइट साइड मे है नीचे
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंवाह!लाजवाब कई चहरे और स्वयं की अदालत।
जवाब देंहटाएंसादर