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शनिवार, 28 नवंबर 2020

प्रणय बेला

 

प्रणय बेला

मेरे रग-रग में व्याप्त है,
रंग प्रेम और संस्कार का
अधरों में हो समाहित,
खिल उठता रंग गुलाब सा
विलय हो उठता अधीर,
समर्पण की विरल चाह सा
प्रफुल्लित हृदय में,
रोम-रोम होता झंकृत वीणा सा
 
प्रेमाकांक्षा से होकर द्रवित,
तत्क्षण होता मन संजीवन
अंतस्थ गहनता का प्रतीक बन,
मुक्ताकाश में करता विचरण
अकलुष बहती प्रेम बयार,
निश्छलता में उमड़ जाता मन
अप्रत्याशित था अब तक,
प्रत्याशित हो उठता वो यौवन
 
प्रतिरोध न तरुणाई कर पाती,
हर्षित होती फिर संचेतना
निस्तब्ध रात्रि के आलिंगन सा,
हर पल होता दृश्यमान
अहसासों की तरंगे होकर संलगन,
लिखती फिर नया स्पर्शज्ञान
बाहुपाश में सौंदर्य निखरता,
संगठित होती प्रणय की सौंधाहट
 
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २८/११/२०२०

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