सच दुनिया का, रिश्तों में ही दुनिया है
कड़वा सच दुनिया का, इन रिश्तों में है
कभी इन रिश्तों में, रास्ते बदल जाते हैं
कभी इन रास्तों में, रिश्ते बदल जाते हैं
बाहर से रिश्ता, हर शख्स निभाता रहा
अंदर से रिश्ता, हर पल वो काटता रहा
रिश्तों में रिश्ते, मैं निभाता ही चला गया
रिश्ते में रिश्ता. दम तोड़ता ही चला गया
यहाँ कौन अपना कौन पराया, बात सही है
रिश्ते बनते व बिगड़ते हैं, हकीकत यही है
खोले थे राज जिनसे, उसी ने की मुखबरी है
शिकायत करूं कैंसे, रिश्तों की मजबूरी है
चेहरों में ले मिठास, खंजर दिल में होते हैं
कुछ रिश्तों में तो, यह मंजर आम होते हैं
साजिश समय की ‘प्रतिबिम्ब’, बड़ी गहरी है
रिश्ते और रास्तों की, कहानी अभी अधूरी है
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, २५ अगस्त २०२२
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