विरह
से आत्मा की गहराई में, दुःख बसा रहता है,
दर्द
जो मजबूत है,
लेकिन इसे छिपाना मुश्किल है।
विरह
का वजन, इसे दबाता और दबाता रहता है,
यह
बोझ बहुत भारी है,
इसे दबाना मुश्किल है।
जीवन
के सुख सारे,
फीके और कम हो जाते हैं,
जीवन
के दुखों के रूप में, वे साथ चलते जाते हैं।
सुलझाने
के हर प्रयास,
हर मोड़ पर असफल होते हैं,
जितनी
अधिक पीड़ा, उतना ही प्रेम को जमानत देते हैं।
दिल
में दर्द होता है,
आत्मा ज्यों टूटती जाती है,
भाग्य
की जंजीरों के रूप में, वे कसती जाती हैं।
कभी
आँसू रोने से बहते, कभी सूख जाते हैं,
जीवन
में दर्द, बढ़ता और बढ़ता ही जाता है।
बाहर
की दुनिया, यह बहुत उज्ज्वल लगती है,
लेकिन
स्वयं के लिए सिर्फ ठंडी, अंधेरी रोशनी है।
हँसी
और जयकार के घोष,
चारों तरफ गूँजते हैं,
लेकिन
विरह में, ये सिर्फ खोखले झुकाव लगते हैं ।
दिल
में खालीपन और अकेलापन, दर्द पैदा करता है,
बिछोह
से उमड़ा अहसास,
अपनों से दूर ले जाता है।
जिस
प्रेम को खोजते हैं, वह बच कर निकल जाता है,
जीवन
के दुःख के रूप में, यह पीछा करता रहता है।
प्रतिबिम्ब
बड़थ्वाल, दिल्ली (भारत)
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