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सोमवार, 20 जुलाई 2015

यादो का कोना



रिवायत बदली है
अब नजरिया बदल गया है  
जिन्दगी का मकसद
अब  बदल लिया है
तुम्हारे मन की बात
कोई और लिखने लगा है 
मुझसे ज्यादा तुम्हे
कोई और पहचानने लगा है


तुम्हारी खुशबू का एहसास लिए
समेट रहा हूँ तमाम  यादें
आवाज़ दे रहा हूँ खाली घर में 
पलट कर कोई बोलता नही
अपनी ही आवाज के शोर में
अब दम सा घुटने सा लगा है
गूँज रहे है कहकहे कहीं दूर
उठ रही टीस उस हर हंसी पर

बदल रहा हूँ
तुमसे जुडी आदते कुछ ख़ास
ढूंढ रहा हूँ
खोया हुआ हर छोटा अहसास
वो चाह, वो बैचनी
अब कही ओझल हो चुकी है
या फिर शायद
किसी कोने में दम तोड़ती मिले
हाँ यादो का हर कोना
मेरे बहुत करीब आ रहा है
शायद आखिरी बार

मिलन की चाह लिए ....... 

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

रविवार, 12 जुलाई 2015

भाव और शब्द ....


क्या हुआ इतने बैचैन क्यों नज़र आ रहे हो ? भावो ने शब्दो से पूछ ही लिया. शब्दो की खामोशी बरक़रार ही रही. कुछ ऐसा था जो आज शब्दों को कुछ भी कहने से रोक रहा था. भाव शब्दों के निशब्द होने से मन ही मन खुद को असहाय महसूस कर रहा था. शब्दो से ही भावो को महसूस किया जा सकता है. अगर शब्द ही नही तो भाव किस काम का. भावो का मंथन जारी था, शब्दों का रुक जाना भावो से बर्दाश्त नही हो रहा था. भावो को अपनी इस हालत पर रोने का मन हुआ लेकिन बात फिर वही, बिना शब्दों के रो भी नही सकता. हँसना - रोना, दर्द - खुशी, धर्म - कर्म, सच - झूठ, गलत - सही, इन सबको कैसे मैं दिखलाऊं.
हिम्मत कर भावो ने शब्दों को अपनी ओर खींच लिया और गले लगा लिया. गले लगाते ही शब्दों ने भी खामोशी तोड़ दी. रुंधी आवाज़ में कहने लगे : भाव तुम हमारे बिना अधूरे हो. तुम हमसे वो सब करवाते हो जो तुम चाहते हो, तुम खुद को लोगो तक या अपनों तक पहुँचाने के लिए मेरा इस्तेमाल करते हो. बस यही सोचकर खामोश थे हम कि तुम हमसे कहलवाकर खुद न जाने कहाँ गुम हो जाते हो और लोग हमें ही अच्छी बुरी नज़र से देखते है. हम हर भाषा को अपनाते हैं, उन्हें तुम्हारा सन्देश सुनाते हूँ, समझाते हैं, लेकिन तुम्हारी भाषा कोई नही, तुम्हारा मन जो चाहता है, समझता है, देखता है वह सब हम लोगो तक पहुँचाने में सक्षम है लेकिन फिर क्यों कुछ लोग समझ पाते है, कुछ लोग समझ नही पाते है और कुछ हमें देखना तक पसंद नही करते.
भावो ने शब्दों को सहलाते हुए कहा नियति है, हम दोनों पूरक है एक दूजे के बस इतना ध्यान रखो. हमारा काम है मन में अवतरित होना और तुम्हारा काम है उन्हें लोगो के दिल और दिमाग तक पहुंचाना. यह उन पर निर्भर करता है कि वे हमसे कैसा व्यवहार करते है. उनकी समझ कहाँ तक हमें समझने में समर्थ है. हाँ उनकी आयु, उनका अनुभव, उनकी चाहत और उनका ज्ञान इसमें अहम् भूमिका निभाते है. यह सुनकर इस बार शब्दों ने भावो को गले लगा लिया और वादा किया कि सदैव भावो का साथ निभाते रहंगे....भाव और शब्द फिर तैयार खड़े है उसी उत्साह उसी उमंग के साथ और प्रतिबिम्ब भी इंतजार में है उनसे मिलने के लिए ... 

शनिवार, 11 जुलाई 2015

श्री ललिता प्रसाद बड़थ्वाल – एक परिचय


राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट.... राम भक्त और भक्ति की कई मिसाले इतिहास या धार्मिक ग्रंथो में दर्ज है, लेकिन इस जीवन काल में एक ऐसी ही विभूति से परिचय होना आश्चर्यजनक तो है ही लेकिन स्वयं में एक प्रेरणा एक दर्शन होना भक्ति का साक्षात प्रभु दर्शन करने जैसा होगा. जी हाँ कुछ समय पहले मुझे इसकी जानकारी स्नेही श्री अनिल बड़थ्वाल जी से मिली. और आज उस राम भक्त श्री ललिता प्रसाद बड़थ्वाल जी का उल्लेख करते हुए और आप सब से परिचय कराते हुए हर्ष के साथ सुखद अनुभूति हो रही है. उन्होंने राम नाम को सवा सो करोड़ बार लिखा. ‘राम’ नाम में उभरे दो अक्षरों से सारी रामायण को रच डाला. वे आज भी ‘सीता राम’ शब्द को लिखने में जुटे है. जिसे अब तक वो पौने दो करोड़ बार लिख चुके है. आइये मिलते है इस रामभक्त से और शुरुआत करते है उनके संक्षिप्त परिचय से.

राम भक्त श्री ललिता प्रसाद बड़थ्वालराम भक्त श्री ललिता प्रसाद बड़थ्वाल


श्री ललिता प्रसाद बड़थ्वाल जी का जन्म उत्तराखंड के गाँव बडेथ, पट्टी ढांगू, हिला पौड़ी गढ़वाल में हुआ. बचपन गरीबी के वातावरण में बीता और हाई स्कूल तक शिक्षा ग्रहण की और फिर जीविका हेतू रेलवे के चतुर्थ श्रेणी में भरती होकर कालका [हरियाणा] आ गए. साथ ही विद्याध्ययन भी करते रहे. ज्योतिष और धर्म के प्रति उनकी आस्था ने, उनकी लगन ने उन्हें रत्न-भूषन-प्रभाकर और विद्यावाचस्पति की उपाधि अर्जित की. २ वर्ष तक वे कालका में गढ़वाल सभा के महा सचिव रहे. सभा के नए प्रतिनधिमंडल में उन्हें प्रचार मंत्री के रूप में कार्य करने का मौका मिला. इसी दौरान उन्होंने लिपिक की परीक्षा पास की, और रेलवे में ही उनका स्थान्तरण भटिंडा [पंजाब] में हो गे. भटिंडा में श्री ललिता प्रसाद जी ने गढ़वाल भ्रातिमंडल की स्थापना की और महामंत्री के पद पर रहे. १९६० में उनका स्थान्तरण हुआ और वे गाजियाबाद आ गए. यहाँ भी कई वर्षो तक वे गढ़वाल सभा के सचिव रहे. पदोन्नति हुई और वे सन १९६८ में दिल्ली  आ गये, रेलवे के प्रधान कार्यलय में वे सीनियर कलर्क, हेड कलर्क एवं सुपरिटेंडेंट की हैसियत से कार्य करते हुए सं १९९१ में वे सेवानिवृत हुए.

उनका कहना है उनके पिता द्वारा ही उन्हें राम नाम की सीख मिली, उनके पिता रामायण बांचते हुये ही इस संसार से विदा हुए.  जब वे कार्य हेतू नित्य गाजियाबाद से नई दिल्ली जाते थे तो उसी रेल के एक डिब्बे में रामायण सत्संग होता था और उनका इस सत्संग से जुड़ना नियति कहा जा सकता है. बाल्यकाल से ही राम के नाम के साथ जुड़ना उनके जीवन में उस भक्ति को चरितार्थ करना ही था. वे नित्यरामायण सत्संग से जुड़े, एक वर्ष तक उपाध्यक्ष के रूप में संस्था में कार्य किया और ५ वर्षो तक इसी संस्था के अध्यक्ष के तौर पर राम नाम का प्रसार करते रहे. सन १९८\७ में एक धार्मिक सम्मलेन में श्री बड़थ्वाल जी का मिलना हुआ अयोध्या के प्रसिद्ध संत और राम जन्म भूमि के अध्यक्ष श्री नृत्य गोपालदास जी से. उन्ही से श्री ललिता प्रसाद जी को श्री राम नाम\ लेखन की प्रेरणा मिली.  दो अक्षरों ‘राम’ नाम से उन्होंने रामायण के हर श्लोक का सृजन किया और सम्पूर्ण रामायण को उन्होंने राममय बना दिया. श्री बड़थ्वाल जी के गुरु श्री रामानान्दाचार्य के चित्रकूट आश्रम के मानस मंदिर में यह रामायण आज भी भक्तो के दर्शनार्थ रखी हुई है. नौकरी के दौरान सहित [ १९८७ – १९९९] १२ वर्षो तक उन्होंने सव करोड़ बार राम नाम लिखने पर, उनके उत्कृष्ट और राम भक्ति से लबरेज सृजन के लिए उन्हें अंतराष्ट्रीय राम नाम बैंक, अयोध्या राम  मंदिर के संस्थापक श्री न्रित्यागोपल्दास ने स्वर्णपदक से सम्मानित किया.

हर श्लोक  के शब्दों को इसी तरह लिखा गया हैहर श्लोक के शब्दों को इसी तरह लिखा गया है राम नाम से सजी रामायण भेंट करते हुएराम नाम से सजी रामायण भेंट करते हुए

गजियाबाद के जगद्गुरु स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी ने तुलसीमंडल संस्था की स्थापना की. श्री बडथ्वाल जी इस संस्था के उपाध्यक्ष भी है. मासिक पत्रिका ‘श्री तुल्सीपाठ सौरभ’ के वे १५ वर्षो तक प्रबंध संपादक रहे.  अब वे सांसारिक क्रियाकलापों से मुक्त होकर ‘सीतराम’ लिखने में सलंगन है. अब तक जिसे वे पोने डॉ करोड़ बार लिख चुके है. उनका कहना है कि श्री राम ही उनके डॉक्टर भी है उनका पावन नाम उनके जीवन में परम औषध का कार्य करती है. उनका एक पुत्र इंजिनियर है एवं दूसरा पुत्र जनरल मेनेजर. लेकिन वे राम नाम के साथ स्वयं को जोड़े हुए है. रामायण का ये श्लोक उनकी भक्ति के उद्देश्य को दर्शाता है

नाम कामतरु काल कराला। सुमिरत समन सकल जग जाला॥ राम नाम कलि अभिमत दाता। हित परलोक लोक पितु माता॥

अर्थात ऐसे कराल (कलियुग के) काल में तो नाम ही कल्पवृक्ष है, जो स्मरण करते ही संसार के सब जंजालों को नाश कर देने वाला है। कलियुग में यह राम नाम मनोवांछित फल देने वाला है, परलोक का परम हितैषी और इस लोक का माता-पिता है.

हर अक्षर में राम - राम शब्द को जोड़ कर पूरी रामचरित्र मानस को अपनी हस्तलिपि द्वारा पूर्ण करना असाधरण कार्य है. श्री बड़थ्वाल जी ने अधिकांश जीवन साहित्य और धर्म के सेवा में लगा दिया है. इस अद्वितीय एवं महान कार्य को पूर्ण करने में उनकी वर्षो की साधना और लगन है. इस महान रचना के रचयिता और राम भक्त को हम प्रणाम करते है. प्रभु से उनकी लम्बी आयु और स्वस्थता की कामना करते है.

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

शुक्रवार, 10 जुलाई 2015

वो....






फूलो से मोहब्बत सीखी है उसने, आँखों में शोखी कयामत ढाती है
महकती है फ़िजा उसके मुस्कराने से, घायल दिल को कर जाती है

ख़बर हर लम्हों की रखते है, करीब आने से न जाने क्यों डरते है
बेकरारी मिलन की बढ़ रही है, हर लम्हा जीते हर लम्हा मरते है

आँख मिलाती है आँखे चुराती है, आँखों से जाम पिलाती जाती है
कभी रंग-ए-मोहब्बत दिखती है, मगर हवा बगावत करती जाती है

लबो पर तबस्सुम लिए फिरती है, उस पर नज़ाकत का क्या कहना
शरारत दिल करना चाहे 'प्रतिबिम्ब', उसकी शराफत का क्या कहना

सोमवार, 6 जुलाई 2015

जख्म




तब चल रही थी बयार कुछ हल्की हल्की
बरस रही थी तब फुहार कुछ हल्की हल्की
अहसास मन में भीग रहे थे कुछ धीरे धीरे
चाहत के फूल खिलने लगे थे कुछ धीरे धीरे

ख्वाब हकीकत से लगने लगे थे होले होले
कश्ती प्यार की तैरने लगी फिर होले होले
खुशबू से उसकी महकने लगे थे तन मन
संगम प्रीत का महसूस कर रहे थे तन मन

फिर वक्त और किस्मत चलने लगे संग संग
टूटने लगे वो ख्वाब सारे जो बुने थे संग संग
वक्त का आंधी तूफ़ान करने लगा हमें दूर दूर
कल थे पास पास आज हम हो गए है दूर दूर 

जानता हूँ किस्मत के सितारे बदलते है पल पल
भावो में छिपी आस की जंजीर टूटती है पल पल
‘प्रतिबिम्ब’ ये जिंदगी यूं भी सताती है कभी कभी

जिंदगी जख्म पर जख्म देती जाती है कभी कभी 

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

मंगलवार, 23 जून 2015

जल की मछली जल में भली




जिन्दगी बड़ी बड़बोली है भाया, न जाने कब क्या बुलवा दे. क्या क्या लिखवा दे, क्या क्या छपवा दे. मैं कहूं तो मुझे सच लागे, वही बात तू कहे तो झूठ लागे, फरेब लागे. लेकिन एक बात तो है बड़ा लुत्फ़ है जिन्दगी में. अगर ठान ले जीना तो फिर किस माई के लाल की मजाल जो जीना छुडवा दे. लेकिन आज कुछ मूड अलग किस्म का हो रहा दोस्तों. कभी गुमान हो जाता कि लिखना ‘मेरे बाए हाथ का खेल’ परन्तु लिखूं क्या, बायाँ क्या दायाँ हाथ भी साथ न दे रहा. खैर सोच तो हमारी ‘लंगोटिया यार’ ठहरी. सोचते सोचते मुहावरों की दुनिया में दिमाग उछल कूद करने लगा. ये लोग, वो लोग, दोस्त और अपने लपेटे में आ गए. ‘गुड खाए और गुलगुले से परहेज’ तो नही हो सकता न.

यहाँ तो न जाने कितने लोगो की ‘पेट में दाढ़ी’ उग आई है बात बात पर दूसरे को नीचा दिखाने को तैयार रहते अगर उनके मन की न हो तो. अजीब सी दुनिया है यारो कही ‘आँख चार होती है’ कही कोई आँखे बिछाए’ बैठा रहता है. कोई ‘आँख दिखा’ रहा है तो कोई ‘आँख में खटक’ रहा है. कहीं भीड़ थाम्बे नही थमती, कहीं सुनसान पड़ा है हर कोना. पर मोह माया सा ऐसा जाल फैला है कि यहाँ होड़ लगी रहती है. कोई ‘आँखो में उतर’ रहा है तो कोई ‘आँखों से गिर’ रहा है. यहाँ ‘मित्र बहुतेरे’ कुछ तेरे कुछ मेरे.

‘सोसियल नेट वर्किंग साईट’ में महिला दोस्त की हाँ में हाँ मिलाने वाले कतारबद्ध ऐसे खड़े होते है जैसे मंदिर में खड़े हो और प्रसाद इनकी मुंह में सीधा गिरने वाला हो. ज़रा सी आहट हुई नही कि उन्हें ‘अपना उल्लू सीधा करने’ का रास्ता चौड़ा और साफ़ दिखाई देने लगता है. यहाँ ‘धुन के पक्के’ लोग भी है जो ‘चिकने घड़े’ से है उन पर कोई असर होता न दिखे. वे अपनी धूर्तता और नापाक इरादों की चासनी पिलाने का कोई मौका नही छोड़ते. हाँ कछु ऐसे लोग भी है जो ‘राई का पहाड़’ बना उड़ते रहते है और सांत्वना की आड़ में अपना स्वार्थ तलाशने में लगे रहते है. कुछ कामयाब हो जाते है. कुछ को किसी की ‘बुरी नज़र का शिकार’ होना पड़ता है. किसी वर्ग विशेष को ‘कटघरे में खड़ा करना’ कुछ लोगो को आदत है. लोग ‘अपने गिरबान में झांकते’ नही अपवाद को लेकर वर्ग विशेष के लोगो के ‘कपडे उतारते’ है या उन्हें ‘हंसी का पात्र’ बनाते है.   

‘सीमा लांघने’ वालो की भी कमी नही, ‘अंगुली पकडाओ’ तो हाथ खींचने को तैयार. हम ‘अपने मुंह मियां मिठ्ठू’ तो नहीं पर ‘उड़ती चिड़िया पहचान’ लेते है. दिमाग की बत्ती’ आन कर लेते है ऐसे मौसम में और सावधानी का बोर्ड सामने टांग लेते है. भई सामने वाले को सचेत करना भी तो हमारी जिम्मेदारी बनती है. कुछ तो गिरगिट को भी पीछे छोड़ देते है रंग बदलने में लेकिन ‘आस्तीन के सांप’ तो हर जगह ‘केंचुली मार कर बैठे’ रहते है और मौका पाते ही डस लेते है.

राजनीति अब संसद, चुनाव छोड़ लोगो के बीच ‘पैर पसार’ चुकी है. ‘कागजी शेर’ के साथ साथ ‘परदे के पीछे’ से पटकथा लिखने वाले बहुत है ‘पराई आग में हाथ सेंकने’ वालो की कमी नही यहाँ. ‘नया नौकर काम करे बढ़िया’ वाली तर्ज पर साथ जुड़ते है और फिर ‘जिस थाली में खाया उसी में छेद करके’ चलते बनते है. ‘गड़े मुर्दे उखाड़ने’ वाले, ‘तलवे चाटने’ वाले. टोपी उछालने वाले’ अक्सर बिन पैंदे के लौटे’ जैसे मिल जाते है यहाँ. ‘नानी के आगे ननिहाल की बाते’ करते लोग उबते नही. पर लोग काहे नही समझते ‘जल की मछली जल में ही भली’ लगती है.

खैर ! हमारे लिए तो भाया ‘सावन हरे न भादो सूखे’ क्योकि अब ‘जल में रहकर मगरमच्छ से वैर’ कैसा. इसलिए अब अपनी ‘चुप्पी भली’. हमने तो कुछ कहा नही बस दिमाग ससुरा लिखवा देता है कुछ भी.. वैसे अपनी किस्मत ऐसी की ‘ऊंट पर बैठे तो भी कुत्ता काट खाए’. फ़िलहाल तो हम ध्यानमग्न है यहाँ. हम मानते है कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ और जानते है कि ‘सहज पके जो, वो मीठा होय’

-    प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

सोमवार, 22 जून 2015

खुद से प्यार खुद से चाह





यहाँ अब दोस्तों को
दोस्त समझना अतिश्योक्ति होगी
जुड़ जाएगा वो स्वयं ही
जब उसे हमारी जरुरत होगी
मतलब की दुनिया में
वक्त आइना दिखाता है
दोस्त कहने वालो का
असली चेहरा दिखला देता है
डरता हूँ कही मेरे शब्दकोष से
दोस्त शब्द ही न एक दिन हट जाए

हाँ उन्हें अपना कहना बेहतर
जो हर मोड़ पर आते हैं नज़र
मौसम अपनेपन का जहाँ बदलता नही
मुझे लगता वही व्यक्ति विशेष सही
अपना गर पराया बन जाए तो सह लेंगे
दोस्त को दुश्मन बनते कैसे सह लेंगे
अब खुद से प्यार खुद से चाह करूँगा
दूसरो का न कोई अहसान अब लूँगा
अँधेरे में गुम हो भी जाए 'प्रतिबिंब' अगर
जानता हूँ रहेगा अपने साथ ही वो मगर

बुधवार, 3 जून 2015

फरमान किस्मत का



['' अक्षर से  निर्मित शब्दों पर  भाव]


‘फखर’ था कभी, जब जिंदगी में हर ‘फतह’ हमारी होती थी
हर ‘फलसफा’ मेहनत का, हम पर ही सदा ‘फलित’ होता था

‘फणित’ वक्त ‘फकत’ अपने ‘फंग’ में हमें सदा कसता रहा
वक्त भी ‘फंद्वार’ बन कर हमसे ही अब ‘फरागत’ पाता रहा

‘फलक’ पर लिखा पढ़ न सका ‘फलत’ सा इंतजार करता रहा
‘फक’ था पैगाम वक्त का, गमो का ‘फफदना’ सदा जारी रहा

‘फरेब’ का ‘फण’ रोज बढ़ता रहा, प्यार का एहसास ‘फजूल’ रहा
‘फुरसत’ कहाँ हमारे नसीब को,‘फंदा’ नियति का सदा झूलता रहा

‘फेरौती’ जैसे भावो को बुनता रहा, तन - मन मेरा ‘फकीर’ होता रहा
‘फेनाग्र’ चाहत का उठता रहा ‘प्रतिबिंब’, ‘फुरकत’ को ‘फलादेश’ कहता रहा


मंगलवार, 26 मई 2015

मोदी @३६५




मोदी के ३६५ दिनों को लोग [ चैनल - सबके अपने अपने पैनललिस्ट और जो शुरू से ही मोदी विरोधी रहे अधिक ] देख रहे है केवल टीवी चैनलों पर या अखबारों के जरिये या पोल सर्वे द्वारा. आंकड़ो के फेर में मैं नही पड़ता लेकिन जो मैंने पाया एक भारतीय होने के नाते

* राज्य सभा में १०१ % कार्य
* लोकसभा में १२३% कार्य
[ संसद में पिछले १५ साल में सबसे अधिक काम ]
* १ साल में ४७ बिल पास [ इन बिलों की लोग मिडिया चर्चा नही करता केवल ३ बिल जिसमे राज्यसभा में राजनितिक कारणों से सफलता न मिलना लेकिन अब सेलेक्ट कमेटी में भेजा गया]

* १७ बड़ी योजनाओ की शुरुआत [स्वच्छ भारत अभियान, जनधन योजना, नमामी गंगे, डिजिटल इण्डिया, मेक इन इण्डिया, श्रेमेव जयते, बेटी बचाओ बेटी पढाओ, बीमा योजना, पेंशन योजना, सिंचाई योजना, स्वाइल हेल्थ कार्ड, मुद्रा बैंक, आज ही २४ घंटे किसान चैनल की शुरआत..  ऐसी ही कई  योजनाये ] ..... क्या इन योजनाओ से आने वाले  समय में लाभ होगा  या नही .ये किसके लिए है .. सोचिये  मित्रो

* १८ देशो का दौरा [ योग दिवस के लिए १७७ देशो का समर्थन, पूंजी निवेश की संभावनाए, मेक इन इण्डिया जैसी सोच के लिए देशो को, उनकी कम्पनियों को प्रेरित करना, कूटनीति के लिहाज से देशो का दौरा, पड़ोसियों को फिर से भरोसा देना जिसमे चीन की भागेदारी बढ़ रही थी, सभी देशो द्वारा भारत को सम्मान देना - विश्व गुरु बनने की दौड़ में प्रयासरत मोदी, हर देश में भारतीय संस्कृति और संस्कार की छाप छोड़ना ]

* रेल, सुरक्षा और रक्षा के  क्षेत्र में साहसिक कदम. [ अन्य क्षेत्रो में भी कार्य हुए है जैसे संचार, शिक्षा आदि महकमो में ]

* केवल नेहरू गांधी ही नही देश में अन्य नेता भी हुए है, उन्हें सम्मान देने का दिल से कार्य शुरू हुआ है

* काले धन पर काम
- एस आई टी गठित
- दो महीने का समय दिया है काले धन वालो को कि टैक्स पे करो वरना जुर्माना तो लगेगा ही,
- जाँच होगी और १० साल तक सजा का प्रवधान,
- बैंक खाते वाले देशो के साथ संधि के दिशा में प्रयास... कुछ के नाम सार्वजनिक हुए .. आज भी ५ लोगो के नाम सिवस बैंक ने जारी किये. पिछली सरकार ने जो स्थिति बनाई है काले धन पर उसके नियमो के कारण उसमे समय तो लगेगा ही.

मुझे पसंद आया  सरकार का
१. स्पीड - एक्शन मोड [ प्रधानमंत्री का ओवारएक्टिव होना  इसका विशेष कारण रहा ]
२. देशो में प्रभुत्व व् कूटनीति विदेश नीति  के तहत - नेपाल में सहायता हो. चाहे यमन, श्रीलंका, ईराक और अफगानिस्तान से भारतीयों को सुरक्षित वापिस
३. कुछ ख़ास कार्यो में सीमा तय करना ... जैसे २०२२ तक सबको घर देना [ बिजली पानी की समस्या से निजाद के साथ ], स्वछता अभियान - जिसका सीधा प्रभाव लोगो के जीवन पर, स्वास्थ्य पर, टूरिज्म पर, रोजगार पर  .... अधिकतर योजनाये सीधे गरीब के हित में है
४. पारदर्शिता के साथ कार्य , भ्रष्टाचार पर लगाम अभी तक

अवश्य ही आने वाले समय में ये योजनाये, नीतिया और मोदी जी का नेतृत्व विकास की नई ऊंचाईया को छुएगा. महंगाई बेरोजगारी जैसी चुनोतियो का सामना करना ही होगा लेकिन मोदी जी की सोच, उनका विश्वास और १२५ करोड़ जनता का प्यार उन्हें अपने कार्य के बल पर सभी चुनौतियों का सामना करंने में सहायक होगा.

मुझे अपनी उम्मीद से उम्मीदे है ... आशा और विश्वास है एक भारतीय होने के नाते - जय हिन्द

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, शारजाह , यूएई 

गुरुवार, 21 मई 2015

शब्द मेरी पहचान



एक समूह में कुछ पंक्तिया लिखी थी फिर मित्रो के कहने पर इसमें विस्तार किया 



शब्द मेरी पूंजी, शब्द मेरा व्यापार
शब्द मेरी प्रतिज्ञा, शब्द मेरी पतवार
शब्द ही भक्ति और शब्द ही सदाचार 
शब्द ही सत्कार और शब्द ही संस्कार

शब्द मेरा सम्मान, शब्द मेरा हथियार 
शब्द मेरा विश्वास, शब्द मेरा व्यवहार
शब्द ही परामर्श और शब्द ही बहिष्कार 
शब्द ही अनुभूति और शब्द ही अलंकार

शब्द मेंरे पाप-पुण्य, शब्द मेरे हरिद्वार 
शब्द मेरे हार-जीत, शब्द मेरे पुरुस्कार
शब्द ही ब्रह्म और शब्द ही विस्तार
शब्द ही विनम्रता और शब्द ही अहंकार

शब्द मेरी मर्यादा, शब्द मेरा गरूर 
शब्द मेरी आत्मा, शब्द मेरा प्यार 
शब्द ही 'प्रतिबिंब', शब्द ही संसार 
शब्द ही औषधि और शब्द ही प्रहार
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