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सोमवार, 30 अगस्त 2010

नई सुबह का आगाज़ हुआ



कल की सुबह
शायद मेरी नही थी
उसमे वो बात नही थी
सूर्य की लालिमा भी
मेरे अहसास को निगल रही थी
मेरा मन झुलस रहा था
अनगिनत बातो से
जो मैने स्वयं संजोये थे
शायद कांटे थे जो खुद ही बोये थे
कल की रात भी काली थी
हर शख्स ने बुरी नज़र डाली थी
मेरे ज़ख्मो को हरा करने की ठानी थी
हर भाव में उलझी मेरी कहानी थी
चांद ने भी सौतेला व्यवहार किया
चांदनी ने भी मुझे शर्मसार किया
सुबह, दिन और रात का काला साया सा
मेरे जड़ चेतन को निगल चुका था
रह रह कर हर बात खंज़र चुभोती थी
दर्द और दर्द ही बस मेरी कहानी थी

लेकिन अब हर बीता कल याद नही
क्योकि नई सुबह ने दिखाई राह सही
एक नई सुबह का आगाज़ हुआ
रात का अंधियारा अब दूर हुआ
चलना है मुझे इस नई रोशनी मे
रास्ता तय करना है इस उज़ाले मे
मंजिल का अभी पता नही
लेकिन मंजिल अब मुझसे दूर नही
मन  में अब बोध हुआ
मस्तिषक मे अब शोध हुआ
संवेदना को पीछे अब छोडा
गैरो से अब मैने नाता तोडा
सीख पाया जो मै कल से
विश्वास पाया है मैने खुद से
वादा किया है अब रब से
सच को अपनाया है फिर से
आज सुबह ने फिर घूंघट खोला है
मेरी मुस्कान को फिर वापिस भेजा है
नया गीत लिखने का अब मन हुआ है
क्योकि एक नई सुबह का आगाज़ हुआ है।

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, अबु धाबी, यूएई


2 टिप्‍पणियां:

  1. नया गीत लिखने का अब मन हुआ है...

    नए गीत लिखती रहिये और नयी सुबह का इस्तेकबाल कीजिये...बहुत आशा वादी रचना है आपकी...बधाई...

    नीरज

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