रास्ते मे...
अनगिनत लोगो से मुलाकात हुई
कोशिश थी कि सभी
हमराही बन कर साथ चले
उनके कदम के साथ मेरे कदम चले
मालूम न था कि
दो कदम साथ चल कर
वे रास्ता बदल लेगे
किसी और के साथ अब
कदमताल करने लगेगे
दो कदम चलने मे
आशा और विश्वास का
जो दीप जलाया था
उसे ही बुझा कर चले गये
एक दूजे को देख हाथ बढाया
लेकिन शायद फिर इरादा छोड दिया
वह खुद ब खुद खडे रह गये
और हम आगे निकलते रहे
सोचा था कि हम भी रुक जाये उनके साथ
लेकिन इशारा उन्होने कुछ येसा किया
कि हम चलने को मजबूर हो गये
अकेले ही इस राह मे चलने लगे
फिर कुछ अज़नबी अपने हो गये
साथ चलने का भरोसा फिर देने लगे
रास्ते मे
अनगिनत लोगो से फिर मुलाकात हुई
कुछ गिनती मे शामिल हुये
कुछ अपनो मे शामिल हुये
कुछ दिलो तक पहुंच गये
कुछ ने दिल मे जगह बनाई
वैसे अब भी नही मालूम
ये भी कब मुझसे अज़नबी
सा व्यवहार करेगे
साथ चलेगे या फिर या
राह मे ही साथ छोड़ देंगे
रास्ते मे
अनगिनत लोगो से मुलाकात हुई
-प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल, अबु धाबी, यु ए ई
बहुत ही अच्छी रचना...बधाई स्वीकार करें...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत अच्छी रचना ..
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