नमस्कार जिन्दगी !
न जाने तुम कब आगे निकल गई
सुप्रभात, नमस्कार को छोड़ पीछे
अब तुम 'हैल्लो जिन्दगी' हो गई
अपनाया था अपना समझ
आज तुम पराई हो गई
खेल रही हाथो में उनकी
दौड़ पूर्व से पश्चिम की हो गई
खो दिया अपनी अमानत को
भारतीयता अब 'इन्डियन' हो गई
संस्कार और संस्कृति हमारी
शायद अब कोई भूली कहानी हो गई
सोचा था विरासत अपनी सौंप देंगे
पर ये पीढी खुद में सिमट कर रह गई
देखे थे सपने बहुतेरे पर जागे नही
जब जागे तो उम्मीदे सब स्वाहा हो गई
नमस्कार जिन्दगी !
अब तुम 'हैल्लो जिन्दगी' हो गई
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
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