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मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

~मुड़ कर देखना~




मुड़ कर देखना मेरे लिए, अब गुनाह हो गया
किया था जिस पर भरोसा, वो ही दूर हो गया
हमेशा साथ रहने का, जिसने वादा था किया 
पलक झपकते ही उसने, वो इरादा बदल दिया

लुटा कर जज्बात अपने, मैंने कारवां बना दिया
दिया था साथ अपनों का, अब अकेला रह गया
दुनियां को नसीहत देते - देते, मैं बूढ़ा हो गया
आया वक्त आजमाने का तो, बदनाम हो गया

एकता का मूल मन्त्र, आज फिर हवा हो गया
स्वार्थ का पलड़ा भारी, हर दोस्त ने बता दिया
जीता था जिसका दिल, वो खेल कर चला गया
सिखाया था जिसे प्यार, वो नफरत सिखा गया

थामा था मैंने हाथ जिसका, वो अंगुली उठा गया
चाही थी मैंने जिसकी खुशी, वो मुझे रुला गया
बिठाया जिसे पलकों में, वो नजरो से गिरा गया
मत जी भ्रम में प्रतिबिम्ब’, वो मुझे सिखा गया

प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल २४/४/२०१८

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