झटक कर हाथ मेरा, दे गया आंसू
यूं जिंदगी से अचानक निकल गया कोई
क्षत - विक्षित कर अहसासों को मेरे
यूं चोट गहरी दिल पर कर गया कोई
साथ नहीं है अब, चेहरा उसका
यूं अपनी तस्वीर से प्रेम सिखा गया कोई
हर चेहरे में चेहरा दिखता उसका
यूं आज भी आँखों में रचा बसा है कोई
जिन होंठो पर, रहता नाम था मेरा
आज उन्हीं होंठो से बेवफा कह गया कोई
पाकर साथ, खुशी मिलती थी जिन्हें
अपनी खुशी के लिए साथ छोड़ गया कोई
अब बारिश में भीग, जी भर रोता हूँ
दर्द की बारिश में याद करना सिखा गया कोई
हैं इंतजार और मिलन की, यादे बहुत
हर आहट पर मुड़कर देखना सिखा गया कोई
ऋण जख्मो के कभी अदा होते नहीं
जख्म प्रेम के नासूर बनाकर छोड़ गया कोई
मैं रूठना चाहता हूँ जिंदगी से ‘प्रतिबिंब’
लेकिन अब डरता हूँ फिर से न मना ले कोई
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३/९/२०१८
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