कुछ
वायदे, कुछ बाते
कुछ
कही, कुछ अनकही
कभी
रुमानी, कभी तन्हाई
कहीं
चंचलता, कहीं व्यवहार
कहीं
चोट, कहीं उपचार
बीते
कल का हिसाब दे रहा हूँ
कभी
कुछ अहसास उभरे थे जो
आज
उनसे किनारा कर लिया
जीता
था जिस वर्तमान में
वह
अब भूतकाल हो गया
जो
थी बेकार की बाते
उन
यादों को अलविदा कह दिया है
दोष
बेहिसाब, कुपित किस्मत
निभा
वफ़ा, गुनाहगार हुआ
दे
सम्मान, अपमानित हुआ
कर
संचित, ख़ुशी अपनी
वक्त
निर्णायक, दिया जो
‘प्रतिबिम्ब’
ने उसे नसीब मान लिया है
संगठित
थे जो शब्दों में
हकीकत
में मिलते ही बिखर गए
खुशियों
के दौर का
था
छोटा सा अंतराल
हर
दौर का कर सम्मान
रह
तटस्थ अब जीना सीख लिया है
नया
साल, नया होगा समा
कहीं
तन्हाई, कहीं लोग जमा
साल
बदला, जोश होता है
नई
उमंग, संकल्प होता है
नया
सृजन, विस्तार होता है
आत्मचिंतन
से अलग चिंतन होता है
प्रतिबिम्ब
बड़थ्वाल २९/१२/२०१८
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