हृदयगति का वेग थमता नहीं, जब सामने तुम होती हो
प्रेम अगन की अग्नि का तुम, तब अंगार बन सुलगती हो
अहसासों का भंवर अंगड़ाई लेकर, आगोश में भर लेता है
काव्य स्पंदन का बढ़ता जाता है, तन - मन तब सह लेता है
सूखे अधरों की लालसा, कर अमृत पान अंगित कर लेती है
अथाह सागर प्रेम का बहकर, एक दूजे में विलय कर जाता है
तृप्त हो ज्यों आत्मा तब, तन – मन, सम्पूर्णता को पाता है
खिल उठता मन सुमन सा, “प्रतिबिम्ब” तब महक जाता है
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, दुबई, यूएई
२८ दिसम्बर २०१९
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