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बुधवार, 15 अप्रैल 2020

~ भीगा कागज ~

      

 



अपने खोए जिनको पाने की खातिर
वो बेरहम बन हमें तन्हा कर चल दिए

दिल से दिल ने पुकारा था उन्हें,
ना पाकर यादों से मिलकर बहुत रोये

दिल की किताब में प्रेम के थे जो पन्ने,
आज वो दर्द की कहानी बन बिखर गए

खामोशी को मेरी अगर वो पहचान पाते
तो आज यूं छुप - छुप कर हम न रोते

बचपन में रोने से सब मिल जाता था
यह सोच उसे पाने की खातिर हम खूब रोये

“प्रतिबिम्ब” प्रेम में भीगा सा कागज हुआ
न कुछ लिख पाया न जलने के काबिल रहा

-प्रतिबिम्ब १५ अप्रैल २०२०


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