सन दो हज़ार उन्नीस को
भरे मन से विदा किया था
होनी अनहोनी के संग
सुख - दुख के तमाम पलो को
समेट कर विदाई दी थी
३१ दिसंबर, १९ की सर्द रात में
और
बहुत अरमानो से
स्वागत किया था तेरा
क्या नहीं चाहा था तुझसे
अपनी ही नहीं देश और
समाज की खुशहाली चाही थी
२०२० को अपना बनाने का
श्रीगणेश कर भी दिया था
सपनों की उड़ान को
बस पंख लगने ही वाले थे कि
‘कोविड १९’ ने सारे अरमानों पर
बुरी नज़र लगा दी
१०० सालों बाद विश्व में
महामारी कोई ऐसी फैली
मिलना जुलना बंद हुआ
अर्थव्यवस्था रुक गई
जीना सबका दूभर कर गई
कितने बेरोजगार हुये
व्यवसाय कितने तबाह हुये
कितनी जानों को छीन गया
लावारिस मौत अपनों की
देख कितना दिल रोया होगा
मौन श्रद्धांजलि हर ओर
अजीब शांति थी बाहर
अंदर हाहाकार था
कहीं ॐ शांति का शोर था
विदा हुये
कितने अपने, कितने नेता,
कितने अभिनेता, कितने सेवा कर्मी
किसी को न तूने छोड़ा
मनोबल तूने सबका तोड़ा
अब तू जा
२०२० तू जा रे
इस बार मैं
स्वागत नहीं कर रहा
अँग्रेजी नववर्ष का
लेकिन तुझे २०२०
अब मैं
भागता हुआ देखना चाहता हूँ
हम सब से कोसो दूर
तेरी यादों को
‘डिलीट’ करना चाहता हूँ
है मुश्किल अपनों को भूलना
पर विश्व की खुशहाली हेतु
तुझे सर पर पैर रखकर
भागते हुये देखना चाहता हूँ
जा रे, तू जल्दी जा रे
प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ३०/१२/२०२०
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