क्षितिज व्योम पर
क्षितिज व्योम पर है रेखांकित
नवजीवन का बन जीवन अमृत
प्रीति रीत का प्रवाह नवनीत
जीवन संगति अनुभूति अतुल
नवजीवन का बन जीवन अमृत
प्रीति रीत का प्रवाह नवनीत
जीवन संगति अनुभूति अतुल
भावना प्रबल, शब्द प्रत्यंचित
दृष्टि आलौकिक, प्रयत निष्ठा
प्रयति आभूषण, वेग प्रहाण
जीवन - धन, प्रहर्षित जीवन
निज मन का स्वाद विमुख है
समर्पण प्रणय बोध सजग है
मोह मंत्र नहीं मुक्ति मार्ग है
संयम व नियम का बंधन है
पर्यवरोध की बन सुरक्षा कवच
प्रगल्भता का तुम प्रणीत संदेश
प्रतीति प्रणय की बन कर श्वास
गूँजती प्रावण सी मुग्ध ध्वनि
आमोद का न होता प्रतिपादन
आत्मीयता का यह गूढ़ दर्शन
अन्तर्मन में होता बस प्रतिनाद
खिलता जलज बन तेरा ‘प्रतिबिंब’
अवचेतन प्राण की चेतना हो
मेरे अस्तित्व का समग्र दर्शन
सींच रही मेरे मन की प्रकृति
अनंत कल्पना की बन साक्षी
क्षितिज व्योम पर रेखांकित
हाँ ! तुम मेरा जीवन हो !!
- प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल ०१\०१\२१
अन्तर्मन में होता बस प्रतिनाद
जवाब देंहटाएंखिलता जलज बन तेरा ‘प्रतिबिंब’
शुभकामनाएँ
सादर
बहुत बहुत आभार यशोदा जी। शुभम
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