~आज के रंगमंच का – एक दृश्य~
परदा उठता हुआ .....
नैपथ्य में गीत बज रहा है
“वो जाने वाले हो सकते तो लौट आना”
नैपथ्य में गीत बज रहा है
“वो जाने वाले हो सकते तो लौट आना”
अदृश्य शक्ति की भांति काली छाया
मंच की ओर अग्रसर होती हुई
गंध दुर्गन्ध का आभास कराता
सफ़ेद धुंआ जगह बनाता हुआ
मंच पर खड़े लोग दूरी बनाते हुए
मुंह को ढकते हुए भय खा रहे
अँधेरा घना फैलता हुआ और...
अब साफ़ दिखने लगा है .....
बेहताश भागते दौड़ते लोग
अफरा तफरी का माहौल
चेहरे उजागर हो रहे
कुछ साए हाथ थाम रहे
गिरते पड़ते लोगों के
पर कुछ तलाश रहे
हताहत लोगो की जेबो में
कुछ चेहरे व्यवस्था को कोसते हुए
कुछ मसीहा बन लूट रहे
भावनाओं से खड़ी नैतिकता को...
तभी दिखता है
एम्बुलेंसों की आवाजाही बढ़ रही है
जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव पर
अकेलापन हावी हो रहा है
चिताये भीड़ का रूप ले चुकी है
राख हो रही है अनेको आशाएं
जाने वाले निष्ठुरता से चले जा रहे हैं
लौट कर कभी न वापिस आने के लिए
सिलसिला तीव्र अति - तीव्र हो चला है
लग रहा हर कोई जाने को विवश है
पैसा, साधन–संसाधन सब पीछे छूट रहे है
बैखौफ आगे बढ़ रही है नियति
उसका क्रूर और भयावह चेहरा
रौशनी की आड़ में दिखने लगा है
और ....
दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों ने
डर से अपनी आँखे बंद कर दी है
होंठों सिल लिए है और हाथ
प्रार्थना की मुद्रा में खुद के लिए
याचना माँगते हुए बुदबुदा रहे है
“इतनी शक्ति हमें देना दाता
मन का विश्वास कमजोर हो न”
परदा गिरता है......
- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ६/५/२१
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